Book Title: Jage So Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 193
________________ १८४ जागे सो महावीर करना ही होगा। आपने किसी को थप्पड़ नहीं मारा, पर आपने किसी को सहलाया भी तो नहीं। आपने किसी को डाँट नहीं पिलाई, पर किसी से प्रेम भी तो नहीं किया। अपरिग्रही वह है जो अपनी सम्पत्ति का उपयोग दूसरों के कल्याण और सहायता के लिए करता है। आप शाम को बैठकर अपनी रोकड़ का हिसाब लगाते हैं कि कितना लाभ या कितनी हानि हुई। ऐसे ही हर शाम व्यक्ति यह भी देखे कि आज उसने कितना धन दूसरों के कल्याण और सहयोग में खर्च किया। पर्युषण के आठ दिनों में आप नगरवासी अपने व्यवसाय बंद रखते हैं और अपने लेखे मिलाते और देखते हैं। ये आठ दिन मिले तो थे कि व्यक्ति इनमें अपने कर्म के लेखे देखे। वह यह देखे कि उसने अब तक कितने शुभ कार्य किये, कितने शुभखर्च किए, पर व्यक्ति आराधना के इन दिनों में भी धन, धन और बस धन के पीछे पागल बना रहता है। मैं यह नहीं कहता कि आप आय पर ध्यान न दें। आखिर आप वणिक हैं। बुद्धि तो भगवान ने पहले से ही आपको बहुत दी है। कमाएँ, पर कमाने के साथसाथ उस धन के सव्यय पर भी ध्यान दें। यह समाज उन्हीं को याद करता है, उन्हीं का अभिनन्दन करता है जो समाज के हित में अपने धन का सदुपयोग करते हैं। गरीबों के लिए अस्पताल बनवाएँ, कुएँ-बावड़ियाँ, मंदिर और विद्यालय बनवाएँ। अगर ऐसा नहीं किया तो ये मोटी-मोटी सोने की जो सांकले आपने गले में डाल रखी हैं, वे किसी दिन गले का फंदा बन जाएँगी। कुछ साथ नहीं जाएगा। अगर सोना जड़ा हुआ एक दाँत भी है तो बेटा चिता जलाने से पहले उसे हथौड़े से तोड़कर निकाल लेगा ताकि दो ग्राम सोना भी व्यर्थ क्यों जाए? अगर तुम्हारे पास तीन मकान है तो कम-से-कम एक मकान तो सद्कार्यो के लिए समर्पित कर दो। ये सामने हंस की तरह उज्ज्वल जो साध्वियाँ बैठी हैं, क्या इनके हाथ नहीं हैं जिनमें ये चूड़ियाँ पहनें? क्या अंगुलियाँ नहीं हैं जिनमें अंगूठी पहनें और क्या गला नहीं है जिसमें सुन्दर हार पहनें ? इन्होंने इन सब वस्तुओं का समाज के लिए त्याग कर दिया है। हाँ, जो औरों के लिए अपनी सुख-सुविधाओं का त्याग कर देता है, वह वन्दनीय और पूजनीय हो जाता है। तुमने सोने के ये मोटे-मोटे कड़े, चेन और बाली पहन रखी हैं। इन्हें देखकर तो तुम ही खुश होते होगे पर यदि इनका सदुपयोग किया जाए तो ये अन्य कई लोगों के चेहरों पर खुशियाँ ला सकते हैं। क्या फर्क पड़ेगा यदि तुम अपनी सौ साड़ियों में से दस साड़ियाँ निकाल कर, पड़ोस में किसी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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