________________
१९४
जागे सो महावीर
यतना से खाओ और यतना से बोलो। जीवन का हर कदम यतना से, योग से, विवेक से जिओ।' यतनाचारी पापकर्म के हर बन्धन से मुक्त रहता है वरना संसार में यह सम्भव ही नहीं है कि व्यक्ति पूर्ण अहिंसक बन सके। हमारा अगला कदम हिंसा के दोष, उसकी छाया से घिरा रहता है । यतना अर्थात विवेक के द्वारा ही धर्म और अध्यात्म को उसके व्यावहारिक रूप में जिया जा सकता है । यतना का अर्थ है कि हम दूसरों के सुखों का भी ध्यान रखें। जैसे कोई आदमी हमें पैर लगाए तो क्या हमें अच्छा लगता है? अच्छा नहीं, बुरा लगता है । कोई हम पर थूके तो हमें बुरा लगता है और कोई हमें साइकिल की टक्कर मार दे तो भी हमें बुरा लगता है । जो व्यवहार हमें बुरा लगता है, वह व्यवहार दूसरों को भी अच्छा नहीं लगता । भगवान कहते हैं कि जो तुम अपने लिए चाहते हो, वही दूसरों के लिए भी चाहो और जो तुम अपने लिए नहीं चाहते, वह दूसरों के लिए भी मत चाहो । यही जिनशासन का सार है ।
यदि हम चाहते हैं कि दूसरे हमारे साथ बुरा व्यवहार न करें तो हमें भी उनके सामने अच्छा व्यवहार पेश करना चाहिए। आखिर यह सारा संसार प्रतिध्वनि का ही तो रूप है। जैसा हम बोलेंगे, वैसी ही आवाज तो गूंजेगी ही और वह पलटकर हम पर बरसेगी। जैसा बीज बोया जाएगा, वैसा ही तो फल निकलेगा । यदि तुम चाहते हो कि तुम्हें बुरी फसलें प्राप्त न हों तो उन फसलों के बीज बोते समय ही सावधान रहो। यदि तुम प्रेमपूर्ण व्यवहार चाहते हो तो तुम भी दूसरों के साथ मधुरता से पेश आओ ।
ध्यान रखो कि क्रोध के बदले क्रोध लौटता है और प्रेम के बदले प्रेम । क्रोध के बदले प्रेम लौटकर आए, यह कम सम्भव है। ऐसे ही किसी के कुवचन के बदले आप सुवचन बोलें, यह भी कठिन है । अगर आप ऐसा करते है तो सचमुच यह आपकी सहनशीलता और सौहार्द ही कहलाएगी ।
जो तोको कांटो बुवै, ताहि बोहि तू फूल । ताको फूल तो फूल है, वाको है तिरसूल ॥ व्यवहार हो तो ऐसा ! महावीर का धर्मसूत्र है
-
जयं चरे जयं चिट्ठे, जयमासे जयं सए । जयं भुंजतो भासतो, पावं कम्मं न बंधई ॥
व्यक्ति सतना के रहस्य को समझ लेता है, उसके लिए अहिंसक नना और अहिंसा जैसे महत्व को जीना उतना ही सरल और सहज हो जाता है
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org