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जागे सो महावीर
व्यक्ति फंसा हुआ है, जैसे कोई मच्छर मकड़ी के जाले में फंस जाए। वह बहुत चाहता है कि निकल जाए, पर निकल नहीं पाता। जैसे कोई मछली आटा देखकर काँटे में फँस जाती है, मुँह बिंध जाता है, आटा छिटक जाता है। बहुत छटपटाती है कि काँटे से निकल जाए, पर निकल नहीं पाती। कषाय और इन्द्रियों के विषय ऐसे ही किसी मगरमच्छ की तरह, किसी मकड़ी के जाले या आटा लगे काँटे की तरह हमें अपनी आगोश में ले लेते हैं। तब हम उस मच्छर, मछली की तरह बहुत छटपटाते हैं कि निकल जाएँ, पर निकल नहीं पाते। ___ आप में से बहुत से लोग भी अफसोस करते हैं कि कहाँ संसार के कीचड़ में फँस गए और सौ-सौ बार सोचते हैं कि निकल जाऊँ इस संसार को छोड़कर, पर घर छोड़कर जाते हैं तो घर की याद सताती है और घर जाते हैं तो फिर लगता है कि जंजाल में फंस गए। इसी अन्तरद्वन्द्व में व्यक्ति की जिन्दगी चुक जाती है। आदमी कषायों में फंस चुका है, उलझ चुका है। ऐसे ही जैसे कोई कीड़ा कीचड़ या दलदल में फँस जाए, वह निकलता है तो फिर धंस जाता है। ऐसे ही जैसे किसी व्यक्ति को तरल ऑक्सीजन में फेंक दिया जाए, ऑक्सीजन उसे मरने नहीं देती
और लिक्विड उसे जीने नहीं देती। ___ ऐसे ही व्यक्ति की स्थिति है, वह बँधा है, जकड़ा है। उसके हाथ में हथकड़ियाँ लगी हैं और पाँवों में बेड़ियाँ हैं। ये हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ व्यक्ति को अपनी मूर्छा, अज्ञान के चलते दिखती नहीं हैं, पर यदि व्यक्ति एकान्त में बैठकर चिन्तन करेगा, तो उसे लगेगा कि क्रोध, काम, राग, द्वेष आदि कषायों ने उसे जकड़ तो रखा है। व्यक्ति बहुत प्रयत्न करता है निकल जाने का, पर मुक्त नहीं हो पाता। वह जब क्रोध करता है, काम जगाता है, राग-द्वेष या अन्य किसी विकार से ग्रसित होता है, तो सोचता है कि ठीक है आज मुझसे यह गलती हो गयी, पर आगे नहीं करूँगा, लेकिन समय आने पर वे ही भूलें फिर-फिर हो जाती हैं।
हर गलती याभूल का अन्तिम परिणाम प्रायश्चित ही होता है। व्यक्ति सिगरेट पीता है और संकल्प करता है कि यह हानिकारक है, अब आगे से नहीं पीऊँगा; लेकिन फिर तलब जगती है और संकल्प धरे रह जाते हैं। खुजली का रोगी बहुत सोचता है कि अब नहीं खुजलाऊँगा, लेकिन जब खुजली बढ़ जाती है तो वह अपने पर नियंत्रण नहीं रख पाता और खूब खुजलाता है। उसे लगता है कि बड़ा मजा आ रहा है, लेकिन खुजलाने के बाद जब पानी, मवाद और खून निकलता है
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