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जागे सो महावीर
पर आ जाएगी और हो सकता है कि आने वाले कल में यह कार्य आपसे सम्पादित भी हो जाए।
सोच वाणी का आधार बनता है, वाणी व्यवहार का; व्यवहार आदतों का आधार बनता है और व्यवहार चारित्र का। यानी मन की सोच चारित्र की कुंजी है। चारित्र को सुधारने के लिए सोच को सुधारना सर्वश्रेण्ठ मंत्र है। ___ हम मानसिक हिंसा से बचने के लिए विकृत सोच से बचें। बुरा न बोलें, बुरा न देखें, बुरा न सुनें। यह तो बाद की बात हुई। चौथा बन्दर इन सबसे पहले एक जरूरी हिदायत देता है कि बुरा न सोचें। यह चौराहे पर लगी लाल बत्ती है। इसके प्रति सजग रहें।
हम वाचिक हिंसा से बचें। यह अहिंसा को वाणी के द्वारा चरितार्थ करना हुआ। भले ही हम मन पर उतना अंकुश न रख पाएँ, पर वाणी द्वारा तो किसी की हिंसा न करें। किसी को गाली देना, आलोचना करना, निन्दा करना, व्यंग्य कसना, खिल्ली उड़ाना और किसी को दूसरे के समक्ष नीचा दिखाकर बेइज्जत करना, ये सब वाचिक हिंसा के रूप हैं।
शरीर द्वारा भी हम हिंसा करते ही हैं। वाहन चलाते समय, फैक्ट्री में काम करते समय, अन्य कार्य करते समय भी हमारी लापरवाही के चलते जीव-घात होता ही रहता है।
एक और हिंसा होती है, व्यवहारजन्य हिंसा या कर्मजन्य हिंसा। यदि इस अनावश्यक हिंसा से बचना चाहें तो बच सकते हैं। जैसे आप सुबह उठे और निवृत्ति के लिए शौचालय गए। यदि आप शौच-क्रिया के पहले थोड़ी-सी यतना कर लें, थोड़ा-सा विवेक रख लें तो आपका शौच जाना भी धर्म का आचरण हो जाएगा। आप निवृत्ति के समय यह देख लें कि वहाँ चींटी-मकोड़े या अन्य कोई जीव-जंतु तो नहीं हैं। ऐसे ही जब आप रसोईघर में जाएँ तो गैस के बर्नर को झाड़पौंछ लें। ऐसा करने से गैस के बर्नर पर रात को कोई जीव बैठा होगा तो वह सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव भी बिना आहत हुए निकल जाएगा।
जैसे आपमंदिर में मोरपंखी रखते हैं, ऐसे ही एक पंखी रसोई के लिए भी हो। जब भी आप गैस का उपयोग करें तो उससे पहले उस पंखी को बर्नर पर फेर लें। इससे वहाँ कोई भी जीव होगा तो वह निकल जाएगा। यदि आप बिना देखे/झाड़े बर्नर जला देती हैं तो थोड़ी-सी अयतना हिंसा का कारण बन जाएगी।
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