________________
सम्यक्त्व की सुवास
अंगुलीमाल चौंका कि मैं जो स्थिर यहाँ खड़ा हूँ, उसे तो यह भिक्षु कहता है रुक जा और स्वयं जो चल रहा है, कहता है मैं स्थिर हूँ। वह बुद्ध के पास आया
और बोला, 'तुम कैसी विपरीत बात करते हो ? मुझे तुम्हारी बात बिल्कुल समझ में नही आई। तब बुद्ध बोले, 'अंगुलीमाल ! मैप्रेम, अहिंसा, करुणा और शान्तिसमता में स्थिर हूँ , अडिग और रुका हुआ हूँ और तू हिंसा और क्रूरता के पथ पर बढ़ता चला जा रहा है, इसलिए मैंने तुझे रुकने के लिए कहा। ___ अंगुलीमाल बोला, 'पर मुझे एक व्यक्ति की अंगुलियाँ चाहिए ही, ताकि मैं हजार व्यक्तियों की अंगुली-माला देवी को अर्पित कर सकूँ।' बुद्ध बोले, 'तब तू अन्य व्यक्ति की प्रतीक्षा क्यों करता है? मुझ पर ही तलवार से वार कर। लेकिन उसके पहले तू मुझे उस सामने लगे वृक्ष से चार पत्ते तोड़कर ला दे। अंगुलीमाल वृक्ष के पास गया और उसने तुरन्त चार पत्ते तो क्या तोड़े, एक टहनी ही तलवार से काटी और बुद्ध के पास ले आया। बुद्ध ने उन पत्तों की तरफ देखा और बोले, 'अंगुलीमाल, जाओ अब इस टहनी को पूर्ववत् पेड़ से जोड़ आओ। ___ अंगुलीमाल बोला, 'भिक्षु ! तुम भी विचित्र व्यक्ति हो, जिस टहनी को तोड़ दिया गया है, उसे क्या पुनः पेड़ से कभी पूर्ववत् जोड़ा जा सकता है? तब बुद्ध बोले, 'जिसमें जोड़ने की शक्ति नहीं है, उसके पास तोड़ने का अधिकार भी नहीं है। तुमने इतने व्यक्तियों का जीवन लिया, पर तुम किसी को नवजीवन नहीं दे सकते। तुम्हें उस जीवन को छीनने का कोई अधिकार नहीं जिसको लौटाने की तुम में सामर्थ्य नहीं हो।'
तब अंगुलीमाल को बुद्ध से सम्यक् बोधि प्राप्त होती है और वह नृशंस हत्यारा एक भिक्षु के रूप में परिवर्तित हो जाता है जो न केवल स्वयं के जीवन को बनाता है वरन् लोगों को भी जीवन का मार्ग प्रदान करता है।
वाल्मीकि तो एक डाकू थे। मार्ग में जो सन्त मिलते हैं, इन्हें वाल्मीकि लूटने का प्रयास करते हैं। वे सन्त कहते हैं कि तुम मुझे बाद में मारना या लूटना। पहले तुम यह तो अपने घरवालों से पूछ कर आओ कि तुम जो यह हिंसा, चोरी, पाप
और अपराध उनके लिए कर रहे हो, उसका फल जब उदय में आएगा तो क्या वे भी उसका परिणाम तुम्हारे साथ भुगतेंगे? वाल्मीकि, भद्रिक और भव्य जीव रहा होगा। वह सन्त के आदेशानुसार अपने घर पर पहुँचता है और अपनी पत्नी से पूछता है, 'प्रिये ! मैं तुम्हारे आराम और सुख-सुविधा के लिए जो यह चोरी,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org