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जागे सो महावीर
खाली जगह को देखकर एक खरगोश वहाँ बैठ जाता है। हाथी जब खरगोश को देखता है, तो उसके दिल में दया उठती है कि जब मैंने इतने जानवरों को यह सुरक्षित स्थान देकर प्राणदान दिए हैं तो इस खरगोश की प्राण-रक्षा के लिए मैं अपने एक पाँव को ऊपर ही रख लूँगा तो इसमें मेरा क्या जायेगा? पर इस नन्हें प्राणी के प्राण अवश्य बच जाएँगे। इन दयाभावों में ही हाथी तीन दिन-तीन रात तक अपना एक पाँव ऊँचा कर खड़ा रहा और अन्त में उसी दयाभाव में मरकर वह राजकुमार मेघ के रूप में जन्मा। __ तब मेघ मुनि को अपना अतीत देखकर बोधि प्राप्त हो जाती है और वह कहते हैं- 'भगवन् ! जिस मार्ग से मैं स्खलित हो रहा था, विचलित होकर फिसल रहा था, आपने मुझे संभाल लिया। आपने जो मुझे सम्यक् बोधि प्रदान की है, उसके परिणाम-स्वरूप मैं एक ठोकर तो क्या हजारों ठोकरों से भी विचलित नहीं होऊँगा। मैं जन्म-जन्म तक श्रमणत्व के इस मार्ग पर अडिग रहूँगा।' मूल्य है बोधि का, अगर एक बार भी बोध प्राप्त हो जाए, एक बार भी जाग मिल जाए तो आगे की यात्रा स्वत: ही सरल हो जाती है। ___ हमलें एक और प्रसंग, रक्तपिपासु अंगुलीमाल का। उसने यह नियम लिया था कि वह एक हजार व्यक्तियों की अंगुलियाँ काटकर, उनसे माला बनाकर किसी देवी को चढ़ाकर उसे प्रसन्न करेगा। अंगुलीमाल अब तक नौ सौ निन्यानवें व्यक्तियों को मार चुका था। उसे एक व्यक्ति की और प्रतीक्षा थी ताकि वह उसकी अंगुली काटकर देवी को हजार व्यक्तियों की अंगुलियों की माला अर्पित कर सके।
• संयोग की बात कि हजारवें व्यक्ति के रूप में बुद्ध उस जगह से गुजरते हैं। अंगुलीमाल एक ऊँची चट्टान पर बैठा था। उसने एक भिक्षु या संत को आते हुए देखा। उसे अन्तिम एक व्यक्ति की प्रतीक्षा तो थी, पर वह नहीं चाहता था कि अन्तिम व्यक्ति कोई भिक्षु या सन्त हो। वह बुद्ध को देखकर बोला, 'तुम जहाँ पर भी हो, वहीं ठहर जाओ। एक कदम भी आगे मत बढ़ाना, अन्यथा तुम्हें मार दिया जाएगा।'
बुद्ध प्रेमपूर्वक बोले, 'अरे अंगुलीमाल ! मैं तो स्थिर ही हूँ। हो सके तो तू रुक जा।
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