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सम्यक्श्रवण : श्रावक की भूमिका
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सत्संग में गुणानुरागी बनें, कमी पर ध्यान न दें। पंथ-परंपरा के आग्रह से हटकर सार्थकताओं को जीवन में आत्मसात् करें। सत्संग में बैठना गंगा में डुबकी लगाने की तरह है। गुरु-चरणों में बैठकर प्रेम और श्रद्धा से ज्ञान की बातों को सुनना, उनका रस लेना, उनमें रमना किसी महान् तीर्थयात्रा के समान है। सुनने का अपना आनंद है। सुनाने वाला यदि ज्ञान के अतिशय रस के अतिरेक से आह्लादित है तो उसके शब्दों को सुनना, उसके मौन माधुर्य का सान्निध्य लेना सचमुच आनंददायक है, मंगलकारी है, कल्याणकारी है। अपनी ओर से इतना ही निवेदन है।
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