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सच्चरित्रता के मापदंड
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बात उस समय की है जब देश आजादी के संघर्ष के दौर से गुजर रहा था। बड़ौदा में महाराज गायकवाड़ किसी आम सभा की अध्यक्षता कर रहे थे। सभा अहिंसा पर थी। लोग आ रहे थे और बारी-बारी से इस विषय पर अपने विचार रख रहे थे। तभी मंच पर एक उत्साही युवक आया। उसने अहिंसा पर इतना लच्छेदार भाषण दिया कि लोग चकित रह गए कि इस व्यक्ति को अहिंसा के विषय में इतना ज्ञान ! उस समय बिजली के पंखे तो लगाए नहीं जाते थे। गर्मी बहत भीषण थी। सब पसीने से तरबतर थे। यवक को भी बोलते-बोलते पसीना आ गया। उसने पसीने को पोंछने के लिए जैसे ही जेब से रूमाल निकाला कि रूमाल से एक अण्डा निकलकर जमीन पर गिर पड़ा। यह देखकर लोग सन्न रह
गये।
एक दूसरा प्रसंग लें। एक बार एक श्रावक बीमार था। वह अस्पताल में दाखिल था। उसे दर्शन देने या मंगलपाठ सुनाने मुझे अस्पताल जाना था। मैं अस्पताल गया। मैंने उसके लिए दुआ की। उसके पास वाले बिस्तर पर एक अन्य रुग्ण महिला लेटी थी जिसे कैंसर था। कैंसर के प्रभाव से उसके सिर के सभी बाल उड़ चुके थे। उसे बार-बार दौरे आते थे और साँस लेने में भी बड़ी दिक्कत हो रही थी। डॉक्टरों ने ऑक्सीजन वगैरह की सब व्यवस्था कर दी थी फिर भी उसे कोई फायदा नहीं हो रहा था। डॉक्टर बड़ा परेशान हो गया। वह रोगी के पास से उठकर बाहर की तरफ चला गया। उसने गुटखे का पाउच खोला, मुँह में डाला और खाली कागज एक तरफ फेंक दिया। संयोग से वह पाउच मेरे पाँव के पास आकर गिरा। डॉक्टर की और मेरी निगाहें आपस में मिलीं और वह फिर अन्दर चला गया। कुछ देर बाद वह अन्दर से फिर बाहर निकला और जाने लगा। तभी मैंने उन्हें रोक कर कहा, 'महाशय ! जरा हाथ आगे बढ़ाइये।' मैंने उनके हाथ में खाली पाउच दे दिया। वह समझ नहीं पाये, बोले, 'मतलब?' मैंने कहा, 'आप तो पढ़ेलिखे हैं। कृपया पढ़ें कि इस पर क्या लिखा है? आप लोग ही तो यह निष्कर्ष निकालते हैं कि तम्बाकू कैंसर का कारण है। इसका सेवन जानलेवा हो सकता है और आप स्वयं ही इसे चबा रहे हैं।' वह बहुत शर्मिन्दा हुए। उन्होंने अपने मुँह में दबाया गुटखा थूका और खेद प्रकट किया। मैंने उन्हें साधुवाद दिया और मनही-मन कहा कि कम से कम एक व्यक्ति तो सुधरा।
एक अनपढ़ व्यक्ति बीड़ी या शराब पीता है तो वह उतना दोषी नहीं है, क्योंकि उसे अच्छे और बुरे का ज्ञान ही नहीं है, पर एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति यदि
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