Book Title: Is Jain Geography Astronomy True
Author(s): Nandighoshsuri, Jivraj Jain
Publisher: Research Institute of Scientific Secrets from Indian Oriental Scripture
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श्रीस्थानकमार्गी विद्वान श्री प्रमोद मुनिजी
विजयनगर (राजस्थान)
२१-१०-२०१८ आचार्य श्री नंदिघोषसूरिजी के चरणों में वन्दना के साथे सुखशांति पृच्छा । यहाँ आचार्य श्री हीराचंदजी मा. सा. के आज्ञानुवर्ति श्री प्रमोद मुनिजी ठाणा - ४ सुखशांतिपूर्वक विराजमान हैं । आपके २७ सितम्बर २०१८ के पत्र के प्रत्युत्तर में मुनिश्रीने निम्न भाव फरमाये हैं । आगम वर्णित लोक और दृष्टिगोचर होनेवाले संसार की विषमता को समझाने का प्रयास वर्षों से चल रहा है । डॉ. जीवराजजी जैनने समाधान की दिशा में एक नवीन संधान किया है । आचार्य श्री नंदिघोषसूरिजीने उस प्रयास को सरल भाषा में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है । लेख में रोचक प्रस्तुति हुई है तथापि कतिपय तथ्य संशोधन की अपेक्षा रखते हैं । वौद्ध साहित्य, रामायण, महाभारत आदि से भी इन तथ्यों की पुष्टि हो सकती है । इन सब तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में यह प्रस्तुति शोध दिशा प्रदान करनेवाली बन सकती है ।
प. पू. मुनि श्री प्रमोदमुनि की आज्ञा से मोहनलाल नाहर, विजयनगर