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(३५)
॥ चोपाईनी देशी॥ ॥ सत्यवादी गुरु जगमा सार, कालिकाचारिय धन अवतार ॥ दत्तराय तुरंग मणि धणी, सत्य बो व्युं जीवित अवगुणी ॥१॥ यथास्थित परगट न वि नणे, बोध लानने ते नर हणे ॥ जन्म जरा म रण उदधि, गयो सोय मरि जीव निबंधी ॥२॥ उत्सूत्र बोलतो हुँतो जंत, बांधे चिकणां कर्म अनं त ॥ संसार वधारे चिहुं गति फरे, जे नर माया मिरषा करे ॥३॥ धर्मविषे माया नवि होय, कपट कलाम म करजो कोय ॥सदोष पररंजवा म बोल, प्रगट वचन श्रणलज्जें खोल ॥४॥ धर्ममांहि नर जोजो कथी, जवका उकोडा तिहां नथी ॥ कपट वंचना बल रहि श्रेय, सुर नरने सरिझुंज कहेय॥५॥ सहुने सरि नांखे जेह, मुगतिपंथनो तारु तेह ॥ सनामांहि नर बोले जिस्यु, एकांत में जांखे तिस्यु ॥ ६ ॥ लोक देखतां जेहवं करे, एकांतिक तेहq आदरे ॥ सोवत जागत सरि ध्यान, करे वखाण तस साचुं ज्ञान ॥ ७॥ हितशिक्षा ए रुषले कही, धर्मकथा सांजलवी सही ॥ शक्ति होय तेहबुं श्राद रे, कत्या विना जग को नवि तरे ॥6॥३३४॥
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