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( १३७ )
रे ॥ स० ॥ १२ ॥ वस्तु वडी जग याखडी, राखेज थिर मन्न रे ॥ कमल शेठें जोइ तालने, कढा लढे सोवन्न रे ॥ स० ॥ १३ ॥ कमल शेठ हतो मो कलो, न लड़े धर्मनी वात रे ॥ अंत समय दीये आ खडी, कमल शेठनो तात रे ॥ स० ॥ ॥ १४ ॥ निरख जे ताल कुंजारनी, पढें जोजन काज रे ॥ कमल शेठ लीये खडी, आणी बापनी लाज रे ॥ स० ॥ १५ ॥ तात परलोके पहोतो सही, पाले कमल ते व्रत रे ॥ एक दिवसें बेठो गुंजवा, सांज तस तुर्त्त रे ॥ स० ॥ १६ ॥ ध विचें उठीने ते धस्यो, कुंजारने बार रे ॥ घेर कुंजार दीगे नहिं, गयो सीम मकार रे ॥ स० ॥ १७ ॥ ताल जोइने पोकारीयो, दीवी दीठी में एह रे ॥ इण वसरें कढा काढतो, प्रजापति जेह रे ॥ स० ॥ १० ॥ मनमां बीहीनो ते यति घणुं, तेडे व गिने तेह रे ॥ तेह मूख्यो जोडी यावियो, करे जोजन गेह रे ॥ स० ॥ १९ ॥ प्रजापति तिहां चिंतवे, ए वे वाणीयो रंद रे ॥ रखे जइ कहे दीवान मां, कढावे पढे कंद रे ॥ स० ॥ २० ॥ कनक कढा इ श्रावियो, शेठ कमलने घेर रे ॥ व्यो ए वहेंची स्वामी लीजीयें, करे विनति बहु पेर रे || स० ॥
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