Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२०४) जास उपाय, ते नर जो परदेशे जाय ॥घणो काल त्यां नवि रहे ए ॥॥ चोमासे रहे एकज गमें, श्रावक न जमे गामो गामें॥ होये जीव विराधना ए ॥३॥ पोते पण नर दोहिलो थाय, लागे वृष्टिने सबला वा य॥ टाढें हाडां खड खडे ए॥४॥ मारे फूकणी दोहि लो थाय, नदी उतरतो जाय तणाय ॥चूके धनने ध मथी ए ॥५॥ तेणें कारण चाले जेहनें, शेषो काल जलाव्यो तेहने ॥ चंज वार जोश् चालजे ॥६॥गु रुवारें नर गमन न कीजें, दक्षिण दिशिये पाय न दीजें ॥ दिशाशूल होये तदा ए ॥७॥ सोम अने वलि शनिश्चर वार, पूरव पासें म करे विहार ॥ बुध मंगल उत्तर नदिए ॥॥ हवे शुक्र ने आदित्य वार, पश्चिम पासें गमन असार॥काज न सीके चिंतव्यु ए ॥ए ॥ जरुर चालवू होये जारें, एक उपाय करे नर त्यारें ॥ सुखड टीळ श्रादित्यें ए॥१०॥ सोमें दहिनुं तिलक बणावे, मंगलें मांटीनुं मन नावे॥बुधे टीतुं धृत तणुं ए ॥११॥ लोट तणुं टीबुं गुरुवारें, शुकें तेल तणुं करी त्यारें ॥ शनिवारें खलनुं करे ए ॥१॥चं मंगल साहामो ते चाले, जिमणो मूक्यो बहु सुख आले ॥ नेद कहुं हवे तेहनो ए ॥१३॥मेष
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223