Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 210
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२००) रें रे॥ सांऊ लमय रे दीवो करे ॥१॥ ए श्रांकणी ॥ जोजन तेह रातें नहिं, नांगो खाटलो मूके रे॥ मां कड जूयें मूंजे जस्यो, रखे सुश्रतो ढुंके रे ॥ सांग ॥ ॥२॥ खाटलो वांशनो वर्जजे, वव्यो ज्यांहिं बहु मेल रे ॥ बल्यो अशल्यो ने काथे जस्यो, सूए ते नर घेल रे ॥ सांग ॥३॥सबल त्रूट्यो ने कोलोथयो,नथि जिहां पांगेत रे ॥ पाथस्या विण नवि पोढियें, सुणो पुरुष संकेत रे ॥ सां०॥४॥रूछियो राय कुनार जा, घरे अहि विषवेली रे॥ जेहमांचे जस्या मांकडा, नर तेहने तुंमेल रे॥सांग ॥५॥ कनक चंदन तणो ढो लियो, वली शीशम सागरे॥हीरनी पाटें तेह जस्यो, पामे पुरुष महाजाग रे॥ सां०॥६॥केश रूथ हीरें जरी, इसी गोदडीज्यांहिंरे॥अतलशलास उशीशडं, सुवे पुण्यवंत त्यांहीं रे॥सांग ॥७॥पाय तले रे तकियो धरे, जलां फूल बहु धूप रे ॥ रेशम गालम शूरियां, जून पुण्य सरूप रे ॥सां० ॥ ॥ मोरना पिबना वीजणा, चामर त्यांहिं ढलाय रे॥गाहा शलो क कहे सुंदरी, चांपे प्रेमशुं पाय रे ॥ सांग ॥ ५ ॥ पोढ्या पुरुष ते मालिये, वाये चिहुंदिशि वाय रे ॥ शानु असारनां पहेरणां, शाकर दूध कढाय रे ॥ For Private and Personal Use Only

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