Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 215
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३) ॥ ॥ तप करतो समजे आगार, ते नर वहेलो पामे पार ॥ जिम जिम वृद्धावस्था थाय, तेम तेम पातक गंमतो जाय ॥ ए ॥ सर्वगाथा ॥ १७०१ ॥ ॥ ढाल ॥ धन्याश्री रागमां ॥ ए देशी ॥ ॥ मी काम गुरुसंगें जाये, सुणवा मधुरी वाणी रे ॥ क्रोध मान माया ने लोनज, मूके नविजन प्राणी रे ॥१॥ जीवघात अति चोरी मूके, मैथुन परिग्रह जेह रे॥ दिशिनां मान करे वली न नखे, अनदय बावीश तेह रे ॥२॥ अनंतकाय बत्रीश ने मूके, चउद नियम संजारे रे॥पन्नरे कर्मादान न सेवे, लाधो जव नवि हारे रे ॥ ३॥ अनरथ दंग नां पाप निवारे, हास्य कुतूहल जेह रे॥ शस्त्रादिक नापे नवि जूवे, सतीश बलंती तेह रे॥४॥सामायि क व्रत सूधुं पाले, नित्य दिशिमान करेह रे ॥ श्रा उम पांखी पोषध करवो, बीजे दिन पडिलेह रे॥५॥ पात्र दान दीये नर नित्ये, ज्ञान लखावी दीजें रे॥ समकितसार ते शुरु राखीजें, नित्य पच्चरकाण करी जे रे ॥ ६ ॥ सात क्षेत्र तणुं पोखे, कीजें दीन उ कारो रे ॥ पर उपगारें वचन वदीजें, मुखें म बोल असारो रे ॥ ७॥ परनिंदा नर म करीश कहि For Private and Personal Use Only

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