Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 218
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१६ ) , कीरति करे जग सहु ॥ ३ ॥ ए हित शिक्षानो रास, सुणतां सबल उल्लास ॥ कस्यो खंजायतमां तास, जिहां बहु मानव वास ॥ ४ ॥ सर्व० ॥ १८२६ ॥ ॥ ढाल || चोपाईनी देशी ॥ ॥ घणां लोक वसे बे त्यांहिं, रास रच्यो बाव तीमांहिं ॥ सकल नगरने नगरी जोय, त्रंबावती ते अधिक होय ॥ १ ॥ सकलदेश तणो शिणगार, गुर्जर देश जिहां पंमित सार ॥ गुर्जर देशमां नगर ज बहु, हारे खंजायत गलें सहु ॥ २ ॥ जिहां विवेक विचार अपार, वसे लोक जिहां वरण चढार ॥ उलखीयें जिहां वर्णावर्ण, साधु पुरुषनां पूजे चरण ॥ ३ ॥ वसे लोक वारु धनवंत, पढेरे पटो लां नर गुणवंत ॥ कनक तथा कंदोरा जड्या, त्रण यांगुल ते पहोला घड्या ॥ ४ ॥ हीर तणो कंदो रो तले, कनक तणां मादलियां मले ॥ बांधी खल खलती हायें खरी, सोवन सांकली गले उतरी ॥ ५ ॥ वडा व्यवहारी जिहां दातार, शालु पाघ डी बांधे सार ॥ लांबी गज जांखुं पांत्रीश, बांधतां हरखें करी शीश ॥ ६ ॥ जैरवनी एगताइ जांहि, जीणा जंगा पहेरे ते मांहिं ॥ बही रेशमी केडें For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 216 217 218 219 220 221 222 223