Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 222
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०) न मिबुं मांहि, दिशितणुं मान धरुं मनमांहि ॥ दियें ॥ २१॥ अजय बावीशने कर्मादान, प्रायें न जाये त्यां मुझ ध्यान ॥ वंदियें ॥ ॥ अनरथ दंग टाकुं हुं आप, शस्त्रादिकनां नहिं मुफ पाप ॥ ॥ वंदियें॥२३॥सामायिक दिशिमान पण करियें, पौषध अतिथि संविनागवत धरीयें॥वंदियें॥॥ सात देत्र पोखी पुण्य खेड, जीवकानें धन थोडंक देखें ॥ वंदियें ॥ २५ ॥ श्म पालुं श्रावक श्राचारो, कहेतां लघुता होये अपारो ॥ वंदियें ॥२६॥ पण मुक मन तणो एह परिणाम, कोश्क सुणि करे श्रातम काम ॥ वंदियें ॥ २७ ॥ पुण्यविनाग होये तिहां महारे, श्स्युंथ षन कवि आप विचारे॥वंदि यें ॥ २७ ॥ परउपकार काज कहिवात, धर्म करे ते होये सनाथ ॥ वंदियें ॥ ए ॥ षनदासें ए जोडियो रासो, संघ सकल तणी पहोती श्राशो॥ वदियें ॥३० ॥ सर्वगाथा ॥१४॥ ॥ इतिश्री हितशिदानो रास संपूर्ण ॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 220 221 222 223