Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 220
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१८ ) पादशाह जेहनो धणी ॥ ते त्रंबावती मांडे रास, जोडतां मुऊ पहोती यश ॥ १६ ॥ युगल सिद्धि अने तु चंद, जुड़े संवत्सर (१६८२) धरी आनंद ॥ माधव मास उकल पंचमी, गुरुवारें मति होये समी ॥ १७ ॥ में गायो हित शिक्षा रास, ब्रह्म सुतायें पूरी खाश ॥ श्री गुरु नामें अति श्रानंद, वंदूं विजयसेन सूरींद ॥ १८ ॥ ॥ ढाल ॥ श्रारतीनी देशी मां ॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ वंदियें विजयसेनसूरि राय, नाम जपंतां सुख सबल थाय ॥ वंदियें विजयसेन सूरि राय ॥ ए कणी ॥ १ ॥ तप गछ नायक गुण नहिं पारो, उसवंरों दुआ पुरुष अपारो ॥ वंदि यें० ॥ २ ॥ शाह कमाकुल हंस गयंदो, उद्योतकार जिम दिनचंदो | वंदियें० ॥ ३ ॥ कोडमदे सुत सिंह सरीखो, नविक लोको मुख गुरु तणुं निरखो ॥ वंदि यें० ॥ ४ ॥ गुरु नामें मुफ पहोती श्रशो, जोड्यो हितशिक्षानो रासो ॥ वंदियें० ॥ ५ ॥ प्रागवंशे सं घवी महिराजो, तेह करतो जिनशासन काजो ॥ वं दियें ॥ ६ ॥ संघपति तिलक धरावतो सार, शत्रुं जय पूजी करे सफल अवतार ॥ वंदियें० ॥ ७ ॥ समकित शुद्ध व्रत बारनो धारी, जिनवर पूज करे For Private and Personal Use Only

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