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( २१५ ) दीसतो, एक दिवस श्राखुं तस बतो ॥ ४ ॥ सुपनें नि मित् यु विचार, प्रकृति फेर घटे जब अहार ॥ तव श्रावक tree श्रादरे, जनम मरण ते बां करे ॥ ५ ॥ उत्कृष्टो मुनिवर होय जास, पंकित मरण कयुं वे तास ॥ सकाम मरण तेने पण कहे, मुगति पंथ तेणें जवि लड़े ॥ ६ ॥ उत्कृष्टा जव सात के
, पढी लहे मुगतिनी वाट ॥ पंकित मरण जे को नर करे, जनम मरणनुं दुःख नवि धरे ॥ ७ ॥ विरति श्रावक जिननुं शरण, तेहने कह्युं बाल पंकि त मरण || व्रत विना श्रावक होय जेह, मरण बाल करे नर तेह ॥ ८ ॥ बाल मरण सुरने प जोय, पंमित मरणें मुगतिज होय || तेणें कारण चेतो नर सदु, रुषन कहे हित शिक्षा बहु ॥ ए॥ ॥ ढाल || ऊलालानी देशी ॥
॥ राग धन्याश्री ॥ कह्यो हित शिक्षानो रास, पहोती मनडा तणी आश ॥ मंदिर कमलानो वास, उत्सव होये बारे मास ॥१॥ सुतां सुख बहु याय, माने महोटा ए राय ॥ संप बहु मंदिरमांय, लहे हय गय वृषजो ने गाय ॥ २ ॥ पुत्र विनीत घरे बहु अ, शीलवंती जली वढूा ॥ शकट घणां घरें न हु
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