Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१२) नाम रे ॥ से० ॥ १७ ॥ सर्वगाथा ॥ १७ए ॥
॥ ढाल ॥ चोपाश्नी देशी ॥ ॥ सूतो नर ऊठे वली तदा, ब्राह्म मुहरत होये जदा ॥ पडे पुरुष पडिक्कमणुं करे, रयणीनुं पातक परिहरे ॥ १ ॥ नहिंतर काउस्सग्ग करजे सार, लो गस्स उजोयगरे ते चार ॥ लागुं पाप पुःखपनज तणुं, धूए सोय पुरुष आपणुं ॥२॥ सुपन अनुन व्युं लेखे नहि, सुण्यु सुनावें दी तहिं ॥रोगे दी चिंत्युं हिए, बए सुपन लेखे नवि कहे॥३॥ देव सु पन देखाडे जेह, पुण्यप्रजावें लाधुं तेह ॥ कर्मादि क पा– जे थयु, ए त्रणेनुं फल पण कर्वा ॥४॥सु पन दोष लागो होय जेह, पडिकमतां धोवाये तेह ॥ पच्चरकाण करे बहु परें, नोकारसीने मांमे धुरें ॥५॥ नोकारसीनां बे आगार, पोरसी साडू पोर सी षट सार ॥ पूरिमड्ढे आगार डे सात, गंठसहिए चारे विख्यात ॥ ६॥ नीवी करतां नव आगार, ए कासणे आज कहुं सार ॥ बेत्रासणे पण आगार ज श्राउ, देखाडे शिवमंदिर वाट ॥७॥आंबिलमां श्राज श्रागार, पाणस्सना षट जांख्या सार ॥ उपवासें पांचज श्रागार, देशावगासिलं करता चार
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