Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 212
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) ॥ ढाल ॥ चेतन चेत रे प्राणीया ॥ तथा ॥ ॥ चाल चतुर चंजाननी ॥ अथवा ॥ वाल ॥ ॥म वदेखेरा श्रावजो॥ ए देशी ॥ ॥पांचे अंगुळे पूजीया, गुण जिन तणा गाय रे॥ दान दीधांजेणें दीपतां, लहे लोग शय्याय रेसेजना नाव सहु सांजलो॥१॥ए आंकणी॥ जीव जाणी नवि राखीया, करे परनी निंदाय रे ॥ परघरैवाढताजांखरां, अणुश्राणा उजायरे ॥से॥२॥ दत्त विना रे दुःखी या जमे, होंश सांजले थाय रे ॥ हाथनी खाटली दोहेली, इसी क्याहिं शय्याय रे ॥ से ॥३॥सेज टाले घणा दोषने, कफ पित्त वली वाय रे ॥ अन्न पचे तन निर्मj, थाक ऊतरी जाय रे ॥ से॥४॥ घोडले पाय न दीजीयें, न सुश्ये पग हेवरे॥नगन पणे सूए मूरखा, दरिखी थाये नेउ रे ॥ से॥५॥ पूर्व दिशें शिर कीजियें, वली कीजें दक्षिण शीश रे॥ विदिशि चारे जोई परिहरो, लहो परम जगीश रे॥ ॥से ॥६॥पूरव दिशें जो माथु करे, विद्या तेह ने होय रे ॥ दक्षिण दिशि धन पामियें, चिंता प श्चिमें जोय रे ॥ से० ॥७॥ मृत्यु ने हाणि होय उत्तरें, न सुए नर कोय रे ॥ सेजनो नाव सह For Private and Personal Use Only

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