Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(२०ए) ॥ सांग ॥१०॥ चंदन अंगें विलेपना, पासें शीतल नीर रे ॥ ऊष्णकालें सुख जोगवे, नारी पहेरण चीर रे॥सां० ॥ ११॥ कनक प्याला कूपा काचना, श्रा रीसा बहु थाल रे ॥ केशरपाक पण वावरे, श्रा व्यो मेघनो काल रे ॥ सांग ॥ १२ ॥ शीदने पाय जोयें धरे, शय्या उपर वास रे ॥ पुण्यवंत खाट पा म्या इसी, पहोंचे श्रातमाश रे ॥ सांग ॥ १३ ॥ बांधिया रेशमी चंडवा, दीवा तस वली दोय रे ॥ देवनां सुख नर ए सही, सरगने कोण जोय रे ॥सांग ॥ १४ ॥ अगरने तापणे तापता, चूा तेल धूपेल रे ॥ रेशमी शिरखो उढता, जूर्व पुण्यना खेल रे ॥ सांग ॥ १५ ॥ सर्वगाथा ॥ १७७२ ॥
॥दोहा ॥ ॥ तेल तलाई ताप, तप्त आहार तंबोल ॥ त डको तरुणी शीतकाल, सात तत्ते कबोल ॥२॥ चंद चीर चंपक चरण, चंदन चतुर कुवार ॥ चतुरा स्त्री ग्रीषम रुतें, सात चच्चा जग सार ॥२॥ पय पीतां बर पाउका, पत्र पूर्ण घर पुराण ॥पाक चोमासें पा मिये, पुण्य तणुं एंधाण ॥३॥ सर्वगाथा ॥ १७७५ ॥
हि० १४
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