Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 213
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) सुणे, सुश् जागतो सोय रे॥से॥७॥ पहोर पढ़ें सेजें सूश्ये, गणी नित्य नवकार रे ॥ पाप अढार वोसिरावियें, कीजें शरण ते चार रे ॥ से ॥ ए॥ चउद नियम संदेपियें, करो वली चौविहार रे॥पर्व तिथियें व्रत पालजे, मासें दिवस ते बार रे॥से० ॥ ॥ १० ॥ सबल कामी खुए देहने, होये पातक पोष रे॥ जीव बेसी घणा मरे, नव लाखनो दोष रे॥ से०॥११॥ नव लाख पंचेंडी हणे, मानव ते असं ख्यात रे ॥ सोय संमूर्बिम जिन कह्या, जोगें तेहनो घात रे ॥ से० ॥ १२ ॥ तेणें घणो काम न सेवियें, सेवे ताम नीराग रे ॥ अलप पातक होये तेहने, नहिं तीव्र राग रे ॥ से० ॥ १३ ॥ जावे अशुचि तिहां जावना, जीव उपनो अहिंय रे ॥ चर्मने हाम मंसें वस्यो, आहार रगतना तहिंय रे॥ से० ॥१४॥ घोर अंधार वेदन घणी, पड्यो नरगमां जीव रे ॥ एम चिंती नजे जोगने, नूख्यो तेह सदीव रे ॥से० ॥ १५ ॥ ब्रह्मचारी नर नीपजे, जंबू नेमी कुमार रे ॥ गज सुकुमारने जोगर्नु, पाप नहींज लगार रे ॥ से० ॥ १६ ॥ षन दीये हित शीखडी, सरे पु रुषy काम रे ॥ उंघ सेई नर जागतो, जपे जिनतj For Private and Personal Use Only

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