Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 205
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०३) सूश्रा सचित्तनुं मान ॥ वरियाली खसखस फल पान, खारुं खूण तजे जो शान ॥ ४६ ॥ खारं रातुं सैंधव जेह, संचलादिक अकीधां जेह ॥ माटी खडी वरणादिक जोय, सचित्त दातण नीलां होय ॥४॥ गहूंथ पलायो सचित्त संजाल, मग चणादिक केरी दाल ॥ मिष्ट होय ते नहिं श्रावती, सोइ न व होरे साचो यति ॥ ४ ॥ लवणादिक पट देई क री, उकालतां श्रचित्त होय फरी॥ वेलूयें शेक्यां अचित्तज हुवां, बाकी मिष्ट सहू जाणवां ॥ ४ ॥ उला लंबी ने वालोलिया, एह सचित्त म जरो कोलि या ॥ शेकी पापड शेकी फली, लवण विना सचि त्त ए वली ॥५०॥ चिनडा प्रमुख वधास्यां जेह,म रियातां रास्तां तेह ॥ मीतुं दीधुं ते पण मिष्ट, जे न लिये ते जननो इष्ट ॥५१॥ रुषन कहे हित शिक्षा सही, श्रावक जनने काजें कही। वली एक कडं उपदेश, सुखीया जनने श्यो उपदेश ॥ ५५ ॥ ॥ ढाल ॥ जिम सहकारें कोयल टहके ॥ ॥ए देशी ॥ ॥नर परदेशे म जाशो कोश, धर्म काम सीदाये दो॥ संदेह अर्थ तणो सही ए ॥ १॥ अहिं नवि सूजे For Private and Personal Use Only

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