Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१०) ससरे हित करी थाप्या एह, पण साचवतां दोहिला तेह ॥४॥ फोली खाधा तेणी वार, त्रीजी वढू त्यां करे विचार॥पोतानुं शय्या घर जांहि, मूके जश ते माबडा मांहि ॥५॥ चोथीनी बुद्धि अति घणी, दाणा मोकल्यां पीयर जणी ॥ एक अलगो लाश क्यारो करी, रोपेजो पंच दाणा व्रीहि ॥६॥उगेते अलगा राखजो, आगल फरीने ते वावजो ॥ पहेले वरसें श्रधवाली थया, बीजे वरसें श्राप दश कया ॥ ॥७॥ त्रीजे वरसें दोय हजार, चोथे वरसें तो वृ कि अपार ॥ पांचमे वरसें नस्या कोगर, लख्युं बे नने कही जूहार ॥ ॥ एणे अवसरें ससरे शुन परें, कुटुंब आपणुं तेड्युं घरें ॥ वहूरो चारने तेडी करी, दाणा पांच माग्या ते फरी॥॥ प्रथम वडी पांच दाणा देह, ससरो कहे नवि होये तेह ॥सम देश्ने पूरे जिस्ये, ए न होय वढू नांखे तिस्थे ॥१॥ शुं कीधुं कहे में नाखिया, उःख लागुं ससरो खीजी या॥ एहथी वडुं न लेलं नाम, नाखवा तणुं जला व्युं काम ॥ ११॥ वेगें तेडी बीजी वह, माहारी थापण लावो सहु ॥ दाणा पांच श्राणीने देह, कहे ससरो जूआ के तेह ॥ १५ ॥ खामी ते में खाधा
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