Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१५) क करुं गहगही ॥ ॥ सनामांहे राख्युं में नीर, गौतम तणी वधारी खीर ॥अंगूठे गुणतां नवकार, तेह मुक्ति पामे निरधार ॥ ए ॥ पशली कोलियो रज मूकवी, मुष्टि वालवी न होय तुम थकी ॥ शस्त्र गांठ कांटो काढवो, सघले कामें वडो हुँ हवो ॥१०॥ चोशठ सहस जे अंतेउरी, वारांगना त्यां बमणी करी॥सघली जरत तणी किंकरी, अनेक नारी एक सरगें हरी ॥ ११॥ सहस हाथणीमां एकज करी, जुए पुरुषने सघली खरी ॥ एम दृष्टांत अनेरा जोय, अंगूठगेज वडेरा होय ॥ १२॥ बोली तव चारे शांगुली, फोकट वाद करो शुं मली॥ एक ले कोणें कांयें न थाय, पांचे पहोंचानी शोजाय ॥ १३ ॥ ते माटें नर जाजा मली, करे काम होय निश्चे वली ॥ सांगणसुत हितशिदा कहे, सुणे सोय उघंतो रहे ॥ १४ ॥ सर्वगाथा ॥ १६४५ ॥ ॥ ढाल ॥ एणी परें राज्य करंता रे॥ए देशी ॥
॥राग गोडी ॥ तजी जंघ सुणो संत रे, हित शिक्षा कडं ॥ उचित साचवो गुरुतणुं ए ॥१॥ वंदन ते त्रण काल रे, जक्ति करे स्तवे ॥ कर्मकथा नित्य सांजले ए ॥ पडिकमणुं गुरु संगें रे, शिर
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