Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१ए) ईश देव नांही जलो ॥१॥ सर्वगाथा ॥१६५७ ॥
॥ ढाल ॥ तेहीज ॥ ॥ वारे नारी ताम रे, लव नवि कीजीयें ॥ गाल न प्रजुनें दीजीयें ए॥१॥ वास्यो न रहे तेह रे, उमया उठता ॥ जश्ने दासी मोकला ए॥५॥ एहने हांकी काढ रे, करतो अवगना ॥ शंकरनी निंदा करे ए ॥३॥ निंदकने होय पाप रे, तेहमां शुं कहे, ॥ पण सुणतां पातक सही ए ॥४॥ए उमयानी वाणी रे, सुणि निवारीयें ॥ गुरुना अव गुण बोलतो ए॥५॥ वारी न शके जोय रे, श्रव णे नवि सणे ॥ बिन जुए गुरुतणां ए॥६॥ गुरु सुखें सुख होय रे, उःखें उःख लहे ॥ कहे ते करे गुरुनु कयु ए॥७॥ एम उचित गुरु सार रे, श्रावक जे करे ॥ सांगणसुत कहे ते तरे ए ॥ ७॥१६६५॥
॥ ढाल ॥ चोपानी देशी ॥ ॥तरे जीव संसारी तेह, शासनविरोधने टाले जेह ॥ साधु वडा, प्रत्यनीकपणुं, करतो वारे तो पुण्य घणुं ॥ १॥ जेम सगरें कीधी बहु सार, पूर्व नवें हुँतो कुंजार ॥ मानव सुंदर शाठ हजार, यात्रा काज चाल्या तेणि वार ॥२॥ चोर लूंटवा जव्या
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