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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१ए) ईश देव नांही जलो ॥१॥ सर्वगाथा ॥१६५७ ॥ ॥ ढाल ॥ तेहीज ॥ ॥ वारे नारी ताम रे, लव नवि कीजीयें ॥ गाल न प्रजुनें दीजीयें ए॥१॥ वास्यो न रहे तेह रे, उमया उठता ॥ जश्ने दासी मोकला ए॥५॥ एहने हांकी काढ रे, करतो अवगना ॥ शंकरनी निंदा करे ए ॥३॥ निंदकने होय पाप रे, तेहमां शुं कहे, ॥ पण सुणतां पातक सही ए ॥४॥ए उमयानी वाणी रे, सुणि निवारीयें ॥ गुरुना अव गुण बोलतो ए॥५॥ वारी न शके जोय रे, श्रव णे नवि सणे ॥ बिन जुए गुरुतणां ए॥६॥ गुरु सुखें सुख होय रे, उःखें उःख लहे ॥ कहे ते करे गुरुनु कयु ए॥७॥ एम उचित गुरु सार रे, श्रावक जे करे ॥ सांगणसुत कहे ते तरे ए ॥ ७॥१६६५॥ ॥ ढाल ॥ चोपानी देशी ॥ ॥तरे जीव संसारी तेह, शासनविरोधने टाले जेह ॥ साधु वडा, प्रत्यनीकपणुं, करतो वारे तो पुण्य घणुं ॥ १॥ जेम सगरें कीधी बहु सार, पूर्व नवें हुँतो कुंजार ॥ मानव सुंदर शाठ हजार, यात्रा काज चाल्या तेणि वार ॥२॥ चोर लूंटवा जव्या For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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