________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१७) जिस्ये, सगर जीव ते धायो तिस्ये॥घणा पुरुषने पूलेह, तस्करगुंते जश्व वढेह ॥३॥ नागा चोर गया उसरी, सुखें जातरा संघे करी॥ एम श्रागम गुरुनो प्रत्यनीक, वारे वेगें न गणे बींक ॥४॥ राय जणी जो जावू थाय, तो दश पुरुष मलीने जाय ॥ अण मिलतो जाये एकलो, तो कूटाये गाढो जलो॥५॥ घणां रांक मली करे काम, जय पामे तस वाधे माम ॥ सुण दृष्टांत घणा तणखलां, मली बांधे गजयूथज जलां ॥ ६ ॥ संप विना सिसि क्यां नवि थाय, नारंग पंखी सुणो कथाय ॥ उदर एकनें माथां दोय, युगल जीव तिहां कणे होय ॥७॥ बेहुने फलनी श्वा हती, बेहुए चाले एके चित्ति ॥ ज्यारें बेहु बेचिंता थाय, ततदण दोव मरीने जा य॥ ॥ण दृष्टांतें संपें सुखी, मरम प्रकाशे थाये फुःखी ॥ वाल्मिक उदर सर्पनी परें, मरे मरम प्रगट ते करे ॥ए॥वसंत पुरे एक वाल्मिकराय, ज्यारें जल पीधुं एक दाय ॥ नाहानो अहि उदरें
आवियो, मांहिंथकी वाधे ते जीयो ॥ १० ॥ पेट वध्युं तव राजा तणुं, अंगें वेदन वाधी घणुं ॥ नूपें अन्न न खायूं जाय, दूध शाकरें शाता थाय ॥११॥
For Private and Personal Use Only