Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 198
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१९६) वहे श्रागना ॥ न करे निश्चे अवगणा ए॥शा गुरुने दिये बहुमान रे, स्तुति परगट कहे ॥ ढांके मा बो लतो ए॥३॥ मिथ्यात्वी नर कोय रे, करतो अव गणा ॥ वारे सर्व शक्तं करी ए ॥४॥ कुमारसंभव मांहि रे, त्यां पण एम कयु ॥ निंदकने वारे सही ए ॥५॥एक दिन ईश्वर ध्याने रे, बेगे वनें जई॥नारी कहे वर किहां गयो ए ॥६॥ वनमां चाली ताम रे, जोती वर तणे ॥ दीगे ध्याने नर रह्यो ए॥७॥ विकूरवियो वसंत रे, शंकर तव जूवे ॥कुण चला वा आवियो ए॥७॥ दीठी नारी ताम रे, राग थयो बहु ॥ पारवती पाबी वली ए ॥ ए॥ हृदय विचारे ईश रे, जो मुझ उपरें॥ राग किस्यो नारी तणो ए॥ १० ॥ धघु बटुकनुं रूप रे, उमयाघर गयो ॥ बोले नूंहुं ईशनु ए॥११॥ सर्वगाथा ॥१६५६॥ ॥बप्पय ॥ ॥ ईश न पूजो देव, हुवो नितीनो रागी ॥ जोरु आगेनाचि, हुई सो बडो अजागी॥अफिम उर ब नाग, जंग बहु खावे नंगी ॥ जोगी कहावे आप, पूजावे लोककुं लिंगी ॥ काम जलाया जग कहे, त्रिया बिना नहिं एकलो, संघवी ऋषन एम उच्चरे, For Private and Personal Use Only

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