Book Title: Hitshikshano Ras
Author(s): Rushabhdas Shravak
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 193
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) सही,तव ससरे तस मी कही ॥ पहेलीथी ए रूडी घणुं, काम नलाव्युं खावा तणुं ॥ १३॥ त्रीजी वह कने मागी बीहि, बोडी गांठ दीधी ते सही॥ रूडी सासरे नांखी तिस्ये, राखवा सरव नलाव्यो श्स्यें ॥ १४ ॥ चोथी तव तेडी रोहिणी, माग्या दाणा वहूअर नणी ॥ वढूअर कहे श्म नावे सोय, तो श्रावे गाडां सय दोय ॥ १५ ॥ गाडां मोकल्यां पीयर नणी, आण्या घर जिहां ससरो धणी ॥ सस रे ख्याति करी नलि वह, वडी करी तस सोंप्यूं सह ॥ १६ ॥ तुं उघनियुक्तिमा जोय, एह कथा कहि तिहां किणे सोय॥ जिन शिष्यने जांखे उपदेश,जुर्ड जावना तिहां मिलेश ॥१७॥शेठ परें यहां गुरु होय, तिहां कुटुंब यहां संघ जोय ॥ जिम वहु तिम शि ष्यनो संच, पंच शालि ते वरतज पंच ॥ १७ ॥ जेणे वधास्यां व्रत वली जेह, हुआ गीतारथ जगमां तेह ॥ जेणे राख्यां ते सूधा यति, गरढाने वांदो गुणमती ॥ १ए ॥ जेणे खाधां पांचे वरत वली, वेषधारी तस कहे केवली ॥ खावा माटें राख्यो वेश, नवि मान्यो तेणे हित उपदेश ॥२०॥ जे व्रत पांचे नाखी गया, तेह पतित नर फुःखीया For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223