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(१४७) वली कोर के ॥ सुर समाधि आवी करे, तो उशिंग ण होय के ॥ गौ० ॥३॥ पुर्निदमांहीथी काढ तो, मूके सुनितमाही के ॥ अटवीमांथी उस रे, मूके वसति होय ज्यांही के ॥ गौ ॥४॥ एम उशिंगण थाये प्रनु, जांखे वीर तिहां नाय के॥क बीथ पड्यो गुरुधर्मथी, आणे तेहने गय के ॥ गौ० ॥५॥ जिम आषाढाचारज मुनि,अणसण बहुने उच्चरावे के ॥ कहे तुमें होश्यो रे देवता, कहे जो मुझने शहां श्रावी के ॥ गौ ॥ ६॥ को कहे वा नवि श्रावीयो, व्यग्र मुनि तिहां होय के ॥ तव एक चेलो रे आपणो, वाहालो सबलज सोय के ॥ गौ ॥ ७॥ मरण समय थयो तेहने, अणसण उच्चराव्युं त्यांहिं के ॥ गुरु कहे चेला थर देवता, क हेवा आवजे आंहिं के ॥ गौ ॥ ७॥ ते पण ना व्यो रे गुरु जणी, उपन्यो ताम संदेह के ॥ धर्म नहि मजगमांही सही, खोटा देवता तेह के ॥ गौ ॥ खाधुं पीधुं ते आपणुं, खोटो संयम वास के ॥ उठी पंथें रे नीकल्यो, घर मांगवानी श्राश के ॥ गौ ॥ ॥१॥ चेले देवतायें तेलयु,श्राव्यो अटवीनी मांहि के ॥ नूषण जरियो रे बोकरो, थर वांदतो त्यांहि
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