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णें, बेसारया सोइ वीर रे ॥ कनक थालमां पीरशीयां, घृत खां ने खीर रे ॥ घ० ॥ ८ ॥ श्वान शिकारीने मूकिया, नाठा मूकी ते थाल रे ॥ श्रेणिक बुद्धि विचा रतो, देखी कूतरा काल रे ॥ घ० ॥ ए ॥ थाल कर एक कोलियो, मूके श्राप मुखमांहे रे ॥ पात्र उमाडी नाखतो, श्वान सघलां बे ज्यांहिं रे ॥ घ० ॥ १० ॥ श्वान वलगे ति थालिये, श्रेणिक कोलिया लेय रे ॥ थाल बीजो वली नाखतो, श्वान तो त्यां वलगेय रे ॥ घ० ॥ ११ ॥ एकेक कवल एम थालथी, लइ पढे नाखेह रे ॥ प्रसेनजितराय मनें जाणियुं, रा ज्यायोग्य वे एह रे ॥ घ० ॥ १२ ॥ राज्य श्रेणिकने
पियुं, बीजाने दिये देश रे | आप संयम लीये तातजी, मूक्या सकल कलेश रे ॥ घ० ॥ १३ ॥ च तुर सांगता, जेम कांचली नाग रे ॥ मूर तें ख लगी रह्या जोगमां, जिम माखी घसती पाग रे ॥ घ० ॥ १४ ॥ अंजलि जल जिस्युं श्राउखु, लची गजतो कान रे || नदीपूर वड़े जोबनुं, जीव की जीयें शान रे ॥ घ० ॥ १५ ॥ समय न चेत्या जे वली, साध्यो नहिं परलोक रे || तेणें नव दोय वि पासिया, गयुं श्रजखं फोक रे ॥ घ० ॥ १६ ॥ इ
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