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(१७) गय वस्तु अनेरी रे ॥ एण पेटीमां षन देवनी, प्रतिमा कंचन केरी रे ॥७॥ एहि ॥ पूजानां उप गरण मोकल्यां, शीख देश सेवकनें रे॥आईकुमार ने हाथे देजो, जोवा म देशो कहोने रे ॥७॥ ॥एहि ॥ सुनटें नेट कुमरने आपी, प्रतिमा पेटी माहे रे ॥ उघाडी जोतां अति हरख्यो, अपूरव दरि सण त्यांहे रे ॥ए ॥ एहि ॥ विचारवा लागो नृप त्यारें, कशी वस्तु ए हो रे ॥ हाथे कोटें प्रति मा बांधी, मस्तकें मूकी जोई रे ॥ १० ॥ एहि ॥ एको गमें न प्रतिमा शोने, आगल मामी जोई रे॥ पोतें साहामो सुपरी बेगे, श्ण विधि सखरी होई रे ॥ ११॥ एहि ॥ ऊहापोह करतां तिहां पाम्यो, जाति समरण सारो रे॥पूरव नवें बे मित्रज हुँता, लीधो संयमनारो रे ॥१२॥ एहि ॥ पूरव पुण्य योगें धरम पाम्यो, तो हवे मुनिवर थालं रे ॥ देश अनारजमां नहिं दीदा, धारय देशमा जाउं रे ॥ १३ ॥ एहि ॥ वीरहा| तेणें दीक्षा लीधी, धन्य तुं थार्यकुमारो रे ॥ अजयकुमारने ते तिहां मलि यो, वाध्यो प्रेम अपारो रे ॥ १४ ॥ एहि ॥ तफ तपता हु केवल नाणी, पंचसया संघातें रे ॥ मुग
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