________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१६४) तो ॥ पुण्य पाधलं वणिक अपार, न शक्यो सुर डे तरी लगार ॥ ७॥ कामथकी परवारे नहिं, चूंमो करी शके ते कहिं ॥ साधु जलो एम वलगो काम, नवरो मन न रहे तस गम ॥॥ तिम नवरी वली न रहे नार, काम विबुद्धी मन तस गर ॥ वा णिग कथा कही में सही, अवर कथा सुणजो गह गही ॥णा श्रीपुर नगरें जिनदत्त शाय, वडो पुत्र पर देशें जाय ॥ श्रीमती नामें तेहने नार, यौवनवंती तेह विचार ॥ १० ॥ नर चाल्यां दिन जाजा होय, तव नाकामातुर सोय॥गरढ। स्त्रीने कहे तेग वार, को एक पुरुषने प्राणो बाहार ॥ ११ ॥ १३ए ॥
॥समस्या दोहा ॥ ॥ गजरिपु तस रिपु तास रिपु, रिपु रिपु वृक्ष मिलाय ॥हरिशय्या पुत्री तणो, सुत पीडे मुझ माय ॥१॥अर्थः-काम पीडे ने ते॥ सर्वगाथा ॥ १४५३ ॥
॥उप्पय ॥ ॥ सत्यनामा घरे काहान, श्राव्यो पछीम रातें। पूछे नारी तुं कोण, हुं माधव निज जातें ॥ माधव तो वनमाही, चक्री चक्री तो कुंभारह ॥ धरणी धर तो शेष, अहिरिपु गरुड अपारह ॥ हरि कहेतां
For Private and Personal Use Only