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(१५ए) गति एकदा करे, तेनुं पुण्य अपार ॥३॥ पिता तणी पूजा करे, फरी फरी वार हजार ॥ मात नक्ति एकदा करे, पुण्य तणो नहिं पार ॥४॥ पशुयां मात तिहां लगें, धावे जव लगें जाय ॥ अधमा नारी नावे जदा, तव लगें माने माय ॥५॥ मध्यम मात तिहां लगें, हाथे नहिं घर बार ॥ उत्तम मात जीवित लगें, सदा करे तस सार ॥६॥ पशुओं मात खुशी तदा, नानो पूंठे जाय ॥ मध्यम मात खुशी तदा, ज्यारे कुमर कमाय ॥ ७॥ उत्तम मात खुशी तदा, सुणती सुत अवदात ॥ लोकोत्तम माता खुशी, जस त्रिहुँ जुवनें जात ॥ ॥ पंच मात शास्त्र कही, नृपनारी निज माय ॥ गुरुपत्नी सासू कही, उरमान नमी पाय ॥ ए ॥ पांच पिता परें मानवा, पंड्यो जनम पिताय ॥ अन्नदाता विद्यागुरु, हणतां जे राखताय ॥ १० ॥ पंच जात शास्त्रे कह्या, मित्र अने मायजात ॥ रोगपालग सांथें नण्यो,मार में कीधो साथ ॥ ११॥ उचित एहनुं साचवे, पूजे मननी वात ॥ सकल कला तस शीखवे, मुंजे सरी खा जात ॥ १२ ॥ हितबुधि शिक्षा दीये, जोह न समज्यो जात ॥ निरवहेवो तो सहि, पीये नीर
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