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(१४) तुमें खट कुमारज मारिया, विरुवा घरवास काम के ॥ गौण ॥२॥ सर्वगाथा ॥ १२५ए ॥ ॥ ढाल ॥ठानो रे बूपीने कंता क्यां ॥
॥ रह्यो रे ॥ ए देशी॥ ॥ इंडियवश पहोतो जीवडो रे, एटलां वानां खोय रे ॥ तप ने कुल शोना देहनी रे,पंमितपणुं गयुं जोय रे॥ मुनिवर कीपे जिय श्रापणां रे ॥१॥ ए
आंकणी ॥ पामे कलंकने आपदा रे, संग्रामनां कुःख सोय रे ॥ इंजियवशें कुल वालु रे, बहु कुःख पाम्यो जोय रे ॥ मु॥२॥ रूडे शब्दें नवि राचि ये रे, रूडं रूप म जोय रे ॥ गंध फरस रस जलें तजे रे, धर्म उद्यम करे सोय रे॥मु ॥३॥ १५६५ ॥
॥दोहा॥ ॥काचो पिंम न पोखियें, अनय न कीजें श्रा हार॥धन मे इंजिय दमे, ते नर पामे पार ॥१॥ मंदिर महिला सुत सुता, एणे मोद्यो सहु लोक ॥ पांच दिवसने कारणे, पाप करे जीव फोक ॥२॥ क्रोध घणो निझा बहु, थाहार तणो नहिं पार ॥ जोगें तृप्ति न पामतो, तस पुर्गति निर्धार ॥३॥ विषय विडंब्यो रावणो, खोया वसा ते वीश ॥
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