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(१४७) के ॥ गौ ॥ ११ ॥ पूज्युं नामज तेहनु, पृथ्वीकायि यो कुमार के॥ नूषण लोले रे मारियो,चालियो तेणी वार के ॥ गौ ॥ १५ ॥ आगल अपकायियो में ब्यो, मारी लीधां आचरण के ॥ पढ़ें तेउकायियो मारियो, वायुका यियाने मरण के ॥ गौ ॥१३॥ वनस्पति त्रसकायियो, मास्या कुमार ते दोय के ॥ पडे सुर संघ विकूर्वतो, वंदन आवे सहु कोय के ॥गौ॥ १४॥ वांदी वलगा रे बोकरा, जोडी जोली ते ताम के ॥ पूजे गुरु किस्यां नूषणां, मुनि कहे एहनुं काम के ॥ गौ ॥ १५ ॥ एम कही मुनिवर चालियो,दीनाटक ताम के॥जोतां खट मासवही गया, न कझुं बीजं कांश काम के ॥ गौ ॥ १६ ॥ आगल जातां रे आवियो, शिष्य करी मूलगुं रूप के॥ वांदी देवता एम कहे, आ शुं तुमह सरूप के ॥गौ ॥ १७ ॥ गुरु कहे तुं शिष्य नावीयो, पडिळ अपार के ॥ शिष्य कहे नाटक जोअतां, तुम होय केटली वार के ॥ गौ ॥ १७ ॥ गुरु कहे थोडीशी वेला दुश्, चेलो कहे षट मास के ॥ नाटक मोह्यो नवि आवियो,तुमो मन राखोह गम के ॥गौारणा
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