________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(७१)
॥ दोहा॥ ॥ तेहज राम ते तापसा, तेहज था श्राश्रम॥हव णां श्रादर बहु करे, पहेलां नागे केम ॥१॥ दोल त देखी जग नमे, करे कह्या विण काम ॥ तिण का रण शछि मेलिये, सीताना पति राम ॥२॥ इछियें पूजा पामियें, धन खाधे गुण जाय ॥ अव्य विहां मानवी,मृतक सम तोलाय ॥३॥ गिरिजाकंत तणुं श्रा जरण, तस रिपुखामी जेह ॥ तस रामा जसघर नहिं, खरो विगतो तेह ॥४॥ दो जिह्वा गति वांकडी, तस रिपु स्वामी नारी ॥ तिण नारे जे परिहया,जूच्या न मे संसार ॥ ५॥ धन पाखें नूलो नमुं, कर मित्र महारी सार॥पडे काम अलगो रह्यो, किश्यो ते मित्र गमार ॥ ६॥ शुं कीजें तेणें सजनें, नीड न नांजे जेण ॥ अजाकंठ पयोहरा, दूध न पाणी तेण ॥७॥ पुरुषा तेहवा मित्त कर, जेहवा अगर बणाय ॥ पर धूपे आ दहे, सऊन लक गुणाय ॥ 6 ॥स रोवर हंस न मित्त कर, चूणी जे अलगा थाय ॥
१ चतुर्थ दोहानो अर्थः- गिरिजाकंत जे महादेव, तेनुं आभरण जे सर्प तेनो रिपु जे गरुड,तेना स्वामी जे विष्णु,तेनी रामा एटले स्त्री जे लक्ष्मी, ते जेने घेर नथी ते खरो विगतो थाय.
हि. ६
For Private and Personal Use Only