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(६ए) हा कहे प्राहिं रे ॥ ते नर ॥ १३ ॥ नूपतिने वा यो परधानें, नरपति चित्त न जावे रे ॥ पोते रथ खेडियो पग उपरें, प्रगट देवांगना थावे रे ॥ ते नरण ॥१४॥ पुप्फवृष्टि करीने बोली, में कीधी परिदाय रे॥ पुत्रतणो मोह तें नवि राख्यो, तिहां पण कीधोन्याय रे ॥ ते नर० ॥ १५ ॥षन कहे नृप एहवा होय, ते नरगें नवि जाय रे ॥ हितशिदा सुणतां ए मा हारी,नूपति धर्मी थाय रे॥ते नर ॥ १६ ॥५ए३॥
॥दोहा॥ ॥ खोटो न्याय करे नहिं, राम सरीखा राय॥ वि क्रम नोज ने जरतरी, जेहनो जश बोलाय ॥१॥ कर्ण कृम हरिचंद हुवो, नल नृप कुमर नरीद ॥ एहनां जश जगमा रह्यां, जब लग तरणि चंद ॥२॥ जात चलंते दाडले, गयो रावण गरिक ॥गया ते पांचे पांमवा, रहि जला तणी प्रसिद्धि ॥३॥ नवे नंद लोजी हुवा, खुए कलंकी नाम ॥ लूंटी धन कर पी मूथा, शुं साध्युं तेणें काम ॥ ४ ॥ ५ ॥
॥ कुंमलियो ॥ ॥ कृपण नंद देखी करी, बोल्यो पंमित राय ॥ नर फीटी ईसर थयो, ते पण मुफ पसाय॥ईश
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