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( ७३ )
गियो, मध्यम पुरुष तेहने जालियो । पायें काम करे ते दूत, ते जांख्यो नर छाडमज पूत ॥ २३ ॥ माथे काम करे ते हमाल, खाये वेंच रोटी ने गाल ॥ अधमाधम ते पुरुष असार, काम जेद कह्या ए चार ॥ २४ ॥ याजीविका सेवायें करे, चार भेद ह श्ये नव धरे ॥ नरपति मुनिवर वाणिक तणी, इतर सेवा ते चोथी जणी ॥२५॥ नरपति सेघा दो हेली कही, वचन चाटुओं कद्देवां सही ॥ सुखें न सुए विहितो रहे, तें मार शरीरें सहे ॥ २६ ॥ उपाय न सूजे बीजो जोय, तो राजाने सेवे सोय || माह्या नृपनी करी चाकरी, दुर्बलकन्नो मूको परहरी ||२७|| कीधा गुणनो जे जग जाए, गुणी नरनां करियें वखाण
॥ क्रूर व्यसनी मूढ रोगीयो, लोजी अन्यायी मूकी
दीयो ॥ २० ॥ राजसनायें बेसे जाय, अति क डे बाधा था | अति वेगलो जर बेसे जेह, मा पण ही नर कहियें तेह ॥ २७ ॥ आगल अन्य पुरुष नवि गमे, पाउल मुख जोवा मन रमे ॥ हारे बेसतां वानर था, बराबरी करतां अवज्ञा थाय ॥ ३० ॥ राजाने नवि कहियें काम, थाक्यो मूख्यो तरस्यो जाम ॥ शयन समे व्यग्राइ रीश, त्यारें
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