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(७१) हना व्यापार ॥ काम नबुं नहिं वैदह तणुं, लान बहु पण पातक घणुं ॥ ६ ॥ सुनट विग्रहने वंडे अति, सुजिद सुख ते वांडे यति ॥ मानव मरण वांडे बांजणा, वैद्य रोग ते वांजे घणा ॥७॥ नदय अजय उशड़ ते दिये, दरिडी रोगीनु पण लिये। हारिका नगरी माहे वसे, अजष्य धनंतरी नरगें खसे ॥ ॥ एहवो वैद्य ते प्रायें होय, जीवानंद सरिखा ते कोय ॥ लोज रहित टाले कषिरोग, बेहु नवें पामे सुख नोग ॥ ए ॥ कर्षण निहुँ नेदें श्राद रे, मेघकूप उन्नय जल नरे॥ पशुआं गाय नेश घर जरे, गज अश्वें आजीविका करे ॥ १० ॥ कर्षण प शुश्रांनो व्यापार, उचित नहिं उत्तम नर सार ॥ विज्ञान कर्मनां जोय प्रकार, कर्मनेद कहुँ तुक चार ॥ ११ ॥ बुझि करे ते उत्तम होय, हाथे करे ते मध्यम जोय ॥ अधमजीव पाए आदरे, अधमा धम ते माथे करे ॥ १२ ॥ बुद्धि कर्म उपर एक वात, चंपा नगरी ने विख्यात ॥ शेठ धनावो तिहां वाणियो, मदन पुत्र तेहनो जाणियो ॥ १३ ॥ बुद्धि हाट मंमाणुंज्यांहि, मदन शेव नर चाल्यो त्यांहि ॥ दाम पांच सहि आपी करी, बुद्धि एक हश्यामां
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