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(७२) धरी ॥ १४ ॥ जिहां वढतां होय मानव दोय, पासे जश्ने तुं म म जोय ॥ इसी बुधि लेई घरें जाय, हस्यो पिता मंत्री तिणे गय ॥ १५ ॥ पाठो वाल्यो सुत तिहां गयो, बुकि आपी अव्य पाठो ग्रह्यो । शीख दीधी तेणें गहगही, वढे दोय त्यां रहेजे सही ॥ १६ ॥ नूप तणा नर वढता दोय, मदन कुमर पासें जई जोय ॥ कस्यो सामियो तेह कुमार, नृप बागल तुं कहे विचार ॥ १७ ॥ सुनट दोश् जूजु आ जई, वदया पुरुष धनाने, कहीं ॥ माहारं रूहूं नवि बोलशे, मदन तणुं तो मुरणज थशे ॥ १७ ॥ धनो गयो तव बुद्धिने हाट, बुकि एक आपो पुण्य माट ॥ दाम पांचशे पहेला लियो, सुनट साख उपर बुद्धि दियो ॥ १७ ॥ नृपना नर जब श्रावे घरे, तव बेटाने धहेलो करे ॥ इसी बुद्धि ले ने फस्यो, घर आवी तसु पहेलो कस्यो ॥ २० ॥ नूपें तेड्यो जेणी वार, तब घहेलाई करे अपार ॥ मंत्रि नृप कहे गांमो एह, किसी सीख नर देशे तेह ॥ २१॥ विघन टस्युं ने देम कल्याण, बुद्धि जली जगमांहि प्रमाण ॥ एम पांचशे बुद्धि ग्रहे, एहने उत्तम नर सहु कहे ॥ २२ ॥ हाथे काम करे वा
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