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( ४८ )
जिम नवि लागे बिंडु रे ॥ ५ ॥ कंठें हृदें उर पू जियें, नवे तिलकनुं मानो रे ॥ गानो रे ॥ करतां पूजे ते तरे ए ॥ ६ ॥ चंदन विण पूजा नहिं, वासपूजा परजातें रे ॥ बहु जांतें रे ॥ मध्यान्हें पूजा कही ए ॥ ७ ॥ दीप धूप संध्यासमय, दक्षिण अंगें दीवो रे ॥ जीवो रे ॥ वाम जागें धूपज करो ए ॥ ८ ॥ फल सुंदर निवेदशुं, जिनागल ते ढोए रे ॥ खोए रे ॥ पातक पूजा करी ए ॥ ए ॥ दक्षिण अंग बेसी करी, चेश्वंदन पण कीजें रे ॥ नाविजें रे ॥ त्रण अवस्था त्रण वारो ए ॥ १० ॥ त्रय वस्था जावजे, जिन बद्मावस्था ज्यारें रे ॥ त्यारें रे ॥ जन्म राजनी दीक्षा जली ए ॥११॥ प्रतिमा प रिकरमां लिख्या, कलशा सुर आकारो रे ॥ धारो रे ॥ जिनमस्तकें सुर गिरि जई ए ॥ १२ ॥ सुगंध नीर लेई करी, कीजें देव पखालो रे ॥ बालो रे ॥ ताम अवस्था जावियें रे ॥ १३ ॥ कुसुमदाम सुर शिर धरे, पुप्फें करी पूजीजें रे ॥ धारीजें रे ॥ ताम छाव स्था राजनी ए ॥ १४ ॥ मुख मस्तक केशज विना, दा अवस्था हु रे || जेदु रे || श्रमण दुवा जिणवर वली ॥ १५ ॥ केवल अवस्था जावियें, प्रातिहार
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