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वार न जोवुं तदा ॥ जूनुं मलिन फाटुं लूगडूं, त जीयें मंमियं जिहां श्रीगडुं ॥ ६ ॥ करे तेह लख मीनो नाश, होय अली घर तेहने दास ॥ न गमे नर नारी गुणवती, तेहनी दोलत नहीं दीपती ॥ ७ ॥ मूरख बे ते सांधे पाघडी, तेहने यापद श्रावे डी ॥ मम सांधे कहियें फालियं, जो तुनें वाहा लुं मालियं ॥ ८॥ ए में जांख्यो वस्त्र विचार, सुण्यो सोय जे नहीं दातार ॥ कांइक काज गुरु कीजियें, थोक मुनिवरनें दीजीयें ॥ ए ॥ मन दुर्बल तो एक मुहप त्ति, तेणें ताहरी होय शुज गति ॥ ए शीखामण दी वी रंक, वडा पुरुषनो श्यो बे अंक ॥ १० ॥ रत्न कं बल दीधा अतिसार, सोवन लरक तस मूल अपार ॥ विविध वस्त्र तथा दातार, देई सफल करे अवतार ॥ ११ ॥ द्विज जुजंगम यागें दुर्ज, वस्त्रदाननो दाता जु ॥ शुभगतिनो जजनारो थयो, तेणें उपदेश में तुमने को ॥ १२ ॥ वस्त्रविचार में विवरी कह्यो, जे पण कांही शास्त्रमांहें लह्यो । रुषजदास हित शिक्षा कड़े, पंकित ते साधुंसह हे ||१३|| सर्व गाथा ॥ ५५॥ ॥ ढाल ॥ दिन दिन समरुं श्री महावीर ॥ ए देशी ॥ ॥ त्रिपदी ॥ पुरुष सहदे जे शास्त्र विचारो, पगवाह
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