Book Title: Hindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Author(s): B L Jain
Publisher: B L Jain

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Page 14
________________ ( १२ ) पायोनियर ( Pioneer ) के इंडियंस ऑव टुडे ( Indians of Today ) अर्थात् " आजकल के भारतवासी" शीर्षक लेख और स्वर्गीय मि. वीरचन्द गान्धी लिखित "स्मरणशक्ति के अद्भुत करतच " ( Wonderful Feats of Memory ) शीर्षक लेख का हिन्दी अनुवाद | अनुवाद काल वि० सं० १६७६ । ( ज ) आपके स्वरचित व अद्यापि अपूर्ण हिन्दी ग्रन्थ : १. विज्ञानार्कोदय नाटक -- ज्ञान सूर्योदय या प्रबोधचन्द्रोदय के ढंग का एक आध्यात्मिक नाटक | निर्माण काल का प्रारंभ वि० सं० १६७२ । ३. हिन्दी साहित्य अभिधान, चतुर्थावयव, "बृहत् विश्व चरितार्णव " -- अकारादि क्रमसे पृथ्वीभर के प्राचीन व अर्वाचीन प्रसिद्ध स्त्री पुरुषों (तीर्थकरों, अवतारों, ऋषिमुनियों, भाचार्यों व सन्तों, पैराम्बरों, इमामों, हकीमों, फ़िलॉसफ़रों, ज्योतिर्विदों, कवियों, गणितज्ञों, देशभक्तों व चक्रवर्ती, अर्द्धचक्री आदि राजाओं व दानवीरों आदि ) का संक्षिप्त परिचय दिलाने वाला एक ऐतिहासिक कोष । निर्माण काल का प्रारंभ वि० सं० १९७५ । ३. हिन्दी साहित्य अभियान, पञ्चमावयव, "लघु स्थानांगार्णव' - विश्वभर के अगणित पदार्थों, तत्वों, द्रव्यों या वस्तुओं की गणना और उनके नामादि को एक एक, दो दो, तीन तीन, चार चार, इत्यादि संख्यानुक्रम से बताने वाला एक अपूर्व कोष । निर्माण काल का प्रारंभ वि० सं० १९७८ । ४. विश्वावलोकन -- दुनिया भरके सप्ताश्चर्यादि अनेकानेक आश्चर्योत्पादक और विस्मय में डालने वाले प्राचीन या नवीन ज्ञातव्य पदार्थों का संग्रह । निर्माण काल का प्रारंभ वि० सं० १६७९ । १. रचनाओं के कुछ नमूने -- १.. (१) पद्यात्मक हिन्दी रचना सप्त दिवस की सम्पदा, अवगुण लावे सात । काम क्रोध सद लोभ छल, तथा बैर अरु घात ॥ पर यदि परउपकार में, धन खर्चे मन खील । सप्त गुणनकर युक्त जो, सो नर रत्न अमोल || क्षमा दया औदार्य अरु, मार्दव मनसन्तोष । चेनत आर्यव शान्ती सहितको वह निर्दोष ॥ नाते २. 'प्रकीर्णक कविता संग्रह' से - Jain Education International अशुभ कर्म अँधियार में, साथ देय कुछ नाँहि । चेतन छाया मनुष को, तजे अँधेरे माँहि !! ३. कड़े वचन तिहुँकाल में, सज्जनः बोलत नाँहि । खेतनयाँ विधना रचे, हाड़ न जिह्वा गाँदि । ४. बहु वो कम बोवो यह है परम विवेक । चेतन यो विधिने रचे, कानदोय जिभ एक For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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