Book Title: Hindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Author(s): B L Jain
Publisher: B L Jain

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Page 13
________________ ( १९ ) से आज तक का एक प्रमाणिक इतिहास । निर्माण काल वि० सं० १६७८, मुद्रण काल १६८१ । ६. हिन्दी साहित्य अभिधान, प्रथमाषयव, 'वृहत् जैन शब्दार्णव' (जैन लाइफ्लो पीडिया (Jain Cyclopædia) प्रथम खंड – जैन पारिभाषिक व ऐतिहासिक आदि.. सर्वप्रकार के शब्दों का अर्थ उनकी व्याख्या आदि सहित बताने वाला महान कोष ! निर्माणकाल का प्रारम्भ मिती ज्येष्ठ शु० ५ ( श्रुत पंचमी ) विक्रम संवत् १६५६, मुद्रणकाल सं० १९८२ । १०. हिन्दी साहित्य अभिधान, द्वितीय अवयव, "संस्कृत-हिन्दी व्याकरणशब्दरत्नाकर" ( संक्षिप्त पद्य रचना व कात्र्य रचना सहित ) -- सिद्धान्तकौमुदी, लघुकौमुदी, शाकटायन, जैनेन्द्र व्याकरण आदि संस्कृत व्याकरण ग्रन्थ, बहुतसे हिन्दी व्याकरण ग्रन्थ, और छन्द प्रभाकर, वाग्भटालंकार, नाट्यशास्त्र, संगीतसुदर्शन, आदि अनेक छन्दालंकार आदि गूथों के आधार पर उनके पारिभाषिक शब्दोंकी सरल परिभाषा उदाहरणादि व अङ्गरेजी पर्यायवाची शब्दों सहित का एक अपूर्व संग्रह | निर्माणकाल वि० सं० १६८१, मुद्रणकाल वि० सं० १६८२ ११. हिन्दी साहित्य अभिधान, तृतीयावयव, "बृहत् हिन्दी शब्दार्थमहासागर”, प्रथम खण्ड हिन्दी भाषा में प्रयुक्त होने वाले सर्व शब्दों के पर्याय वाची संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी, अरबी, अङ्गरेज़ी शब्दों और उनका अर्थ व शब्दभेद ? आदि बताने वाला अकारादि क्रम से लिखा हुआ सर्वोपयोगी एक अपूर्व और महानकोष । निर्माणकाल वि० सं० १६८१, मुद्रणकाल वि० सं० १९८२ । आपके स्वसंपादित व जैनधर्म संरक्षिणी सभा अमरोहा द्वारा प्रकाशित हिन्दी ग्रन्थः १. जैनधर्म के विषय में अजैन विद्वानों की सम्मतियां प्रथमा भाग- सम्पादन काळ व मुद्रण काल वि० सं० १९७१ २. जैनधर्म के विषय में अजैन विद्वानों की सम्मतियां द्वितीयः भाग -- सम्पादन काल व मुद्रण काल वि० सं० १६७६ (छ) आपके स्वरचितं, अनुवादित और अद्यापि अप्रकाशित हिन्दी ग्रन्थः १. प्रकीर्णक कविता संग्रह-निर्माण काल वि० सं० १९७०-७१.... २. जैन विवाह पद्धति (भाषा विधि आदि सहित ) -- निर्माण काल वि० सं० १६७१ ३. जम्बू कुमार नाटक--- वैराग्य रसपूर्ण स्टेज पर खेलने योग्य गद्यपद्यात्मक एक बड़ा मनोरंजक ऐतिहासिक नाटक । निर्माण काल वि० सं० १९७२, ७३ ४. आश्चर्यजनकं स्मरणशक्ति--ता० २२ मई सन् १६०१ ई० के सुप्रसिद्ध दैनिक पत्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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