Book Title: Hindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Author(s): B L Jain
Publisher: B L Jain

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Page 11
________________ । - १८. भोज प्रबन्ध नाटक (प्रथम भाग)--राजनीति और धर्मनीति का शिक्षक, अलंकृत ___ गधपद्यात्मक ड्रामा । निर्माणकाल व मुद्रणकाल वि० सं० १९६० । १९. गंजीनए मालूमात--सैकड़ों प्रकीर्णक ज्ञातव्य बातों का संग्रह । निर्माण व मुद्रण काल वि० सं० १६६०। २०. इलाजुल अमराज़-कुछ वैद्यक आदि सम्बन्धी चुटकुलो से अलंकृत एक पुस्तिका ___निर्माण व मुद्रण काल वि० सं० १६६० । २१. हकीम अरस्तू-यूनान देश के प्रसिद्ध विद्वान् 'अरस्तू' (सिकन्दर महान का गुरु ) का जीवनचरित्र उसको अमूल्य शिक्षाओं सहित । निर्माण व मुद्रण काल वि० सं० १६६१ । २२. नशीली ची -मदिरा, अहिफेन, भंग, चरस, तमाकू आदि अनेक माधक दूषित पदार्थों के गुण दोष और हानि लाभादि । निर्माण व मुद्रण काल वि० सं० १९७२,७३ । २३. मोडर्न मेंटल अरिथमेटिक (प्रथम भाग)--नवीन शैली पर बालकों को शिक्षा देने वालो गणित सम्बन्धी एक साधारण पुस्तक । निर्माण व मुद्रण काल वि०सं० १९७३ । २४. अन्पोल कायदा नं० २--त्रिकालवी किसी हिन्दी माल की ज्ञात मिती का नक्षत्र या चन्द्रमा की राशि जिह्वागू निकाल लेने की सुगम विधि । (ख) आपके स्वरचित व अद्यापि अप्रकाशित उर्दू गन्यः १. अग्रवाल इतिहास--सूर्यवंश की एक शाखा अग्रवंश या अप्रवाल जाति का ७००० __ वर्ष पूर्व रो आज तक का एक प्रमाणिक इतिहास । निर्माण काल वि० सं० १९८० । (ग) आपके स्वअनुवादित व स्वप्रकाशित उर्दू व अंग्रेजी ग्रन्थ । १. भर्तृहरि नीतिशतक--अनुवाद व मुद्रण काल वि० सं० १९५५ । २. भर्तृहरि वैराग्यशतक--अनुवाद काल वि० सं० १६५५, मुद्रणकाल १६५५, १६६० । (दो संस्करण) ३. जैन वैराग्यशतक--अनुवाद काल वि० सं० १९५६, मुद्रण काल वि० सं० १९५६, १९६० । (दो संस्करण) ४. सीताजी का बारहमासा--यति नैन सुखदास कृत बारहमासा उर्दू गद्य अनुवाद स. __ हित । अनुवाद व मुद्रण काल वि० सं० १९५६ । ५. योगसार--योगेन्द्राचार्य कृत 'योगसार' ( ब्रह्मज्ञान को सार ) का गद्य अनुवाद अनेक उर्दू फ़ारसी पद्यों से अलंकृत । अनुवाद काल वि० सं० १६५५, मुद्रण काल १९५६, १९.८० । (दो बार) ६. चाणक्यनीति दर्पण--दोनों भाग का एक नौतिपूर्ण शिक्षाप्रद अनुवाद । अनुवाद काल वि० सं० १९५७ व मुद्रण काल १६५७, १६६० । (दो संस्करण) ७. प्रश्नोत्तरी स्वामी शंकराचार्य--शिक्षाप्रद साधारण अनुवाद । अनुवाद व मुद्रण काल - वि० सं० १९५५ १६१०। (यो बार) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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