Book Title: Hindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Author(s): B L Jain
Publisher: B L Jain

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Page 12
________________ - ८. जैन वैराग्यशतक (अंग्रेज़ो)--अनुबाद काल वि० सं० १९६१, मुद्रणकाल १६६७ । (घ) भापके स्वप्रकाशित अन्य उर्दू ग्रन्थः१. सुदामाचरित्र-उर्दू पद्य में । मुद्रण काल वि० सं० १९५४ । २. ३.. ४. मिथ्यात्व नाशक नाटक (३ भाग)-गद्यात्मक उर्दू भाषा में एक बड़े ही मनो- रंजक अदालती मुकदमे के ढंग पर जैन, आर्य, बौद्ध, इस्लाम, ईसाई आदि मत मता. न्तरों के सत्यासत्य सिद्धान्तों का निर्णय । मुद्रण काल वि० सं० १६५६, ५७, ५८ । ५. वैगग्य कुतूहल नाटक ( २ भाग)-संसार की असारता दिखाने वाला एक हृदय गाही दृश्य। मुद्रण काल वि० सं० १९५८, १६६२ ।। ७. रामचरित्र-सारी जैन रामायण का सारांश रूप एक ऐतिहासिक उपन्यास । मुद्रण काल वि० सं० १९६२ (ङ) स्वरचित व स्वप्रकाशित हिन्दी गन्धः१. हनुमान चरित्र नविल भूमिका ( निज रचित उर्दू पुस्तक का हिन्दी अनुवाद)-इसमें वानर वंश और राक्षसघंश की उत्पत्ति और उनका संक्षिप्त इतिहास, बानरवंश के वंशवृक्ष व कई ऐतिहासिक .फुटनोटों सहित है। हिन्दी अनुवाद काळ वि० सं० १९५२, मुद्रणकाल १६५३ २. अन्मोल बटी (निज रचित उर्दू भाषा की पुस्तक का हिन्दी लिपि में उल्था )-यह एक बड़ा उपयोगी वैद्यक प्रन्थ है। हिन्दी अनुवाद व मुद्रण काल विक्रम - संवत् १९७१। ३. उपयोगी नियम ( शीट )-इस में सर्व साधारणोपयोगी हरदम कंठान रखने योग्य चुने हुये ५७ धार्मिक तथा वैद्यक नियमों का संग्रह है। निर्माण व मुद्रणकाल वि० सं० १६७८ ४. २४ तीर्थङ्करों के पञ्च कल्याणको की शुद्ध तिथियों का तिथिक्रम से नक्षत्रों सहित शुद्ध तिथि कोष्ठ । निर्माण व मुद्रणकाल वि० सं० १६७८ | ५. अन्मोल विधि नं०१-त्रिकालवर्ती किसी अङ्रेजी ज्ञात तारीख का दिन या शात दिन की तारीख अद्ध मिनट से भी कम में बड़ी सुगम रीति से जिह्वान निकाल लेने की अपूर्व विधि। आविष्कार काल वि० सं० १६४८, मुद्रणकाल १६८० । ६. अन्मोल विधि नं० २--त्रिकालवर्ती किसी हिन्दो मास की मिती का नक्षत्र या चन्द्रमा की राशि जिह्वान निकाल लेने की सुगम विधि । मुद्रणकाल वि० सं० १६८० । ७. चतुर्विशतिजिन पंचकल्याणक पाठ (एक प्राचीन सुप्रसिद्ध हिन्दी कवि, पं. वृन्दावनजी की कृति का कल्याणक क्रम से सम्पादन )--सम्पादन काल वि० सं० १९८० मुद्रणकाल १६८१ ___८. अग्रवाल इतिहास-सूर्यवंश की शाखा अग्रवंश या अग्रवाल जाति का ७००० वर्ष पूर्व Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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