Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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( १४ ) ३४३, मणिविजय IV ३४४, मतिकुशल ३४४-३४५, मतिसागर ३४५, मतिसार ४६, मनराम ३४६, मनोहरदास ३४६-३४९, महिमावर्धन ३५०, महिमा सरि ३५०, महिमासेन ३५०, महिमाहंस ३५०, महिमाहर्ष ३५१, महिमीदय या महिमोदय ३५१-३५२, महेश ३५२, माणिक्य ३५२-३५३, माणिक्यविजय ३५३-३५४, माणिक्य सागर ३५४, माणेक विजय ३५४-३५५, माणेकविमल ३५५, मानकवि ३५५-३५७, मानमुनि ३५७-३५८ मानविजय [ ३५८-३५९, मानविजय II ३५९-३६०, मानविजय III ३६०-३६२, मानविजय ३६२-३६४, मानसागर ३६४-३६६, मानसिंह 'मान' ३६६-३६७, मुनिविमल ३६७, मेघविजय ३६७, मेघविजय II ३६८, मेघविजय III ३६८-३७०, मेरुलाभ ३७०-३७, मेरुविजय ३७१-३७२, मोतीमालु ३७२-३७३, मोहनविजय ३७३-३७७, मोहनविमल ३७७-३७८, यशोनंद ३७८, यशोलाभ ३७९, यशोवर्धन ३८०, यशोविजय ३८१-३८३, रंगप्रमोद ३८३, रंगविनय गणि ३८३-८४, रंगविलास गणि ३८४-८५, रत्नचंद (भट्टारक) ३८५-८६, रत्नजय ३८६, रत्नराज (उपा०) ३८६, रत्नवर्द्धन ३८७, रत्नविमल ३८८, रघुनाथ ३८८-३९३, राजरत्न ३९३-९४, राजलाभ ३९४-९६, राजविजय ३९६-९७, राजसार ३९७-३९९, राजसुंदर ३९९-४००, राजसोम ४००, राजहर्ष ४००-१०२, रामचन्द्र 'बालक' ४०२-४०३, रामचन्द्र ४०३, रामचन्द्र चौधुरी ४०३, रामचन्द्र ४०३-४०८, रामविजय ४०८-४१०, रामविजय (रूपचंद) ४१०-४१२, (वाचक) रामविजय ४१३-४१५, रामविजय ४१५-४१६, रामविमल ४१६, रायचंद ४१७-१८, रायचंद II ४१८ १९, रुचिरविमल ४१९४२०, रूपभद्र ४२०, रूपविमल ४२०-४२१, लक्ष्मण ४२१, लक्ष्मीचंद्र ४२१-२२, लक्ष्मीदास ४२२-२३, लक्ष्मीरत्न ४२३-४२५, लक्ष्मीवल्लभ (उपा०) ४२५-४३१, लक्ष्मीविजय ४३१-४३२, लक्ष्मीविजय II ४३२, लक्ष्मीविजय ४३२-४३३, लक्ष्मीविमल ४३३-३४, लाखो ४३५, लब्धरुचि ४३५-३६. लब्धिविजय ४३७-३८, लब्धिविजय(वाचक ४३८-३९, लब्धिसागर ४३९-४४०, लब्धोदय गणि ४४०-४४३, लाघाशाह ४४३. ४४६, लाभकुशल ४४६, लालचंद या लाभवर्द्धन ४४६, लाभवर्द्धन पाठक ४४७-४४९, लालचंद ४४९, लालरत्न ४४९-४५०, लावण्यचन्द्र ४५०-५१, लावण्यविजय गणि ४५१-५२, लोहर (शाह) ४५२-५३, वछराज ४५३, वधो ४५३-५४, वर्द्धमान ४५४, वरसिंह ४५४-५५, वल्लभकुशल ४५५-५६, वस्ता (मुनि) ४५६-५७, ब्रह्मवाधिराध ४५७,
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