Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 14
________________ ( १३ ) दलपति २१६, दयासार २१६-२१७, दशरथ निगोत्या २१७, दान विजय [ २१७-२१९, दानविजय II २१९-२२१, दामोदर २२१, दिलाराम २२१, दीपचंद २२२-२२३, दीपचंद II २२४, दीपचंद कासलीवाल २२४-२२५. दीपविजय III या दीप्तिविजय २२५-२२६, दीपसौभाग्य २२६-२२८, दूर्गदास या दुर्गादास २२८-२२९, देवकुशल २२९-२३०, (श्रीमद्) देवचंद २३०-२३४, देवविजय २३४-२३७, (वाचक) देवविजय २३७-३८, देवविजय III २३८-२३९, ब्रम्हदेव या देवजी २३९-२४१, देवीचंद २४१, देवीदास २४२-२४४, देवीसिंह २४४, दौलतराम पाटणी २४४-४५, दौलतराम कासलीवाल २४५.२४७, दौलत विजय २४७-२४८, द्यानतराय २४८-२५१, धनदेव २५१, धर्मचंद (मंडलाचार्य भट्टारक) २५१-२५२, धर्ममंदिर गणि २५२-२५५, धर्मसिंह २५५, धर्मवर्द्धन महोपाध्याय धर्मसिंह २५५-२६२. धीरविजय २६२, नंदराम (जैनेतर) २६२-२६३, नथमल २६३-२६४, नयप्रमोद २६४-२६५, नयविजय २६५, नयणरंग २६५, नयनशेखर २६६, नयन सिंह २६७, नवल २६७, नवलसाह २६७-२६८, नाथू ( ब्रम्हचारी ) २६८, नित्यविनय २६८-२६९, नित्यलाभ २६९-२७१, नित्यसौभाग्य २७२, निहाल चंद २७३-२७५, नेणसीमता २७५-२७६, नेमचंद्र २७६-७७, नेमिचंद्र I २७७-२७९, नेमिदास श्रावक २७९-२८०, नेमविजय २८०-२८३, न्यायसागर २८३-२८६, पद्म २८६-८७, पद्मचंद्र २८७-२८९, पद्मचंद्र शिष्य २८९, पद्मचंद्र सूरि २८९-२९०, पद्मनिधान २९०, पद्मविजय २९०, पद्मसुंदर गणि २९१, पद्मो २९१-९२, परमसागर २९२, पर्वतधर्मार्थी २९३, प्रागजी २९३, प्रीतिवर्द्धन २९३-९४, प्रीतिविजय २९४-९५, प्रीतिसागर २९५-९६, पुण्यकीति २९६. पुण्यनिधान २९६-९७, पुण्य रत्न २९७-२९९, पुण्यहर्ष २९९-३०१, पूर्णप्रभ ३०१-३०४, प्रेमचंद ३०४, प्रेमानंद ३०४-०६, प्रेमविजय ३०६, बख्तावरमल ३०६, बच्छराज ३०७, बधो ३०७, बाल ३०७-०९, बालक (रामचंद्र) ३०९, बंशीधर ३०९-३१०, ब्रह्मदीप ३१०-३११, ब्रह्मनाथू ३११-३१२, बिहारीदास ३१२-३१३, बृन्द ३१३, बुधविजय ३१४, बृद्धिविजय ३१४, बुलाकीदास ३१४-३१६, बेलजी मुनि ३१६, (भैया) भगवतीदास ३१६-३२२, भवानीदास ३२२-३२३. भागविजय ३२३-३२४, भानुविजय ३२४, भानुविजय या भागविजय ३३५-३३६. भावजी ३२६, भावप्रमोद ३६७, भावरत्न (भावप्रभ सरि) ३२७-३३३. भाऊ ३३३-३३४, भुवनसोम या भुवनसेन ३६५-३३६, भूधरदास खंडेलदास ३३७ ३४३, भोजसागर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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